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________________ (110) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध कैसा है? वह नाना प्रकार के मणिरत्नों से जड़ा हुआ है। सब लोगों के देखने योग्य, बहुमूल्य, शुभ पट्टण में निर्मित, रेशमी वस्त्र का, अनेक प्रकार की चित्रकारी वाला याने मृग, वृषभ, घोड़ा, मनुष्य, मत्स्य, पक्षी, सर्प, किन्नर, अष्टापद, चमरी गाय, हाथी, वनलता, पद्मलता इत्यादिक अनेक रूप उस परदे में चित्रित हैं। ऐसा परदा बाँधा। उस परदे के भीतरी भाग में अनेक जाति के मणिरत्नों से जड़ित अच्छी सुकोमल गद्दियों सहित मशरू का वस्त्र ढंका। उस पर श्वेत वस्त्र ढंका। जिसका स्पर्श सुकोमल अंग को सुखकारक है, ऐसा एक बढ़िया बाजोठ त्रिशला क्षत्रियाणी के लिए रचाया। फिर सिद्धार्थ राजा ने पारिवारिक पुरुष को बुला कर कहा कि. हे देवानुप्रिय! तुम शीघ्रमेव याने तत्काल अष्टांग महानिमित्त के जानकार, सूत्रअर्थ धारण करने वाले, अनेक प्रकार के शास्त्रों में चतुर और स्वप्नशास्त्र में कुशल ऐसे स्वप्नलक्षण पाठकों को बुलाओ। ___ यहाँ आठ अंगों के नाम कहते हैं- प्रथम अंगस्फुरणविचारांग- इसमें शरीर के स्फुरण का विचार है। जैसे कि स्त्री का बायाँ अंग फड़के तो अच्छा इत्यादि बातें जानना। दूसरा स्वप्नविचारांग- इसमें उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ स्वप्नों का विचार है। तीसरा स्वर-विचारांग- इसमें काली चिड़िया, रूपारेल, सियार प्रमुख के बोलने के अनुसार फलविचार है। भूमिकंपन से शुभाशुभ कहने वाले शास्त्र सो भौमविद्या नामक चौथा अंग जानना। मसा, तिल, लहसुन इत्यादि का विचार जिसमें है, वह व्यंजनविद्या नामक पाँचवाँ अंग जानना। हाथ-पैर की रेखाएँ देखने का विचार जिसमें है, वह लक्षणविद्या नामक छठा अंग जानना। उत्पातविद्या सो उल्कापात, तारा टूटना, मंडल मंडना इत्यादि का विचार जिसमें है, वह सातवाँ अंग जानना। आठवाँ अन्तरिक्षविद्या का अंग सो ग्रहों के अस्त, उदय, वक्र आदि के फल जिसमें है, वह आठवाँ अंग जानना। इनके जानकार स्वप्नपाठक पुरुषों को बुलाओ। ऐसा सिद्धार्थ राजा ने कहा, तब वह पारिवारिक पुरुष सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ। फिर हाथ जोड़ कर 'तह त्ति' कह के सिद्धार्थ क्षत्रिय राजा के
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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