________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (109) 57. वैय्याकरणपाठी, 58. तर्कपाठी, 59. साहित्यबन्धक, ६०.लक्षणबंधक, 61. छन्दबन्धक, 62. अलंकारज्ञाता, 63. नाटकबन्धक, इनके परिकर के साथ घिरा हुआ सिद्धार्थ राजा स्नानघर से निकल कर सभामंडप में गया। वह कैसा शोभता है? धवल मेघ की घटा में से निकलते हुए सूरज के समान शोभता है। तथा जैसे नक्षत्र-ग्रह प्रमुख तारों में चन्द्रमा शोभता है, लोकों में राजा शोभता है, वैसा मज्जनघर से निकलते हुए शोभायमान हुआ नरपति नरों में इन्द्र, नरों में वृषभसमान, नरों में सिंहसमान, बहुत अधिक राजतेज की लक्ष्मी से चमकता हुआ स्नानघर से निकल कर जहाँ सभा की शाला है, वहाँ जा कर सिंहासन पर पूर्व दिशा की तरफ मुख कर के बैठा। स्वप्नपाठकों को आह्वान . बैठ कर स्वयं से उत्तर और पूर्वदिशा के मध्य के ईशानकोण में आठ बाजोठ श्वेत वस्त्र से ढंके हुए, श्वेत सरसव और श्वेत द्रोभ कुमकुम से मंगल के लिए पूज कर स्थापन किये और एक परदा बाँधा। वह परदा एक बार राजा ने अपनी पटरानी से कहा कि तू तेरे पीहर चली जा। जब मैं नामांकित मुद्रिका भेजूं, तब तुरन्त चली आना; पर अन्य किसी के कहने से मत आना। इसके बाद वह रानी अपने पीहर चली गयी। फिर राजा ने संधिपालक से कहा कि मेरी रानी नाराज हो कर पीहर चली गयी है। उसे तुम बुला लाओ तो तुम्हारी अक्ल सही जानें। फिर संधिपालक तीर्थवासी का वेश धारण कर रानी के पीहर के गाँव गया। रानी को खबर मिली, तब रानी ने उसे बुलाया और कहा कि तू मुझसे मिलने क्यों नहीं आया? तब उसने कहा कि अब मैं तीर्थवासी हुआ हूँ, इसलिए संसार से संबंधित किसी कार्य में नहीं पड़ता। रानी ने कहा कि धन्य है तेरा अवतार। पर मुझे राजा के समाचार तो बता। तब संधिपालक सिर हिला कर कहने लगा कि राजा ने अब किसी राजा की पुत्री के साथ विवाह करने का विचार किया है। वह कन्या बहुत रूपवती है और राजा ने उसे पटरानी बनाने का सोचा है। यह बात सुनकर रानी शीघ्रता से पुनः अपने घर गयी। राजा ने पूछा कि तुम बिना बुलाये उतावली क्यों आ गयी? तब रानी ने गुस्से हो कर कहा कि तुम अब नयी पटरानी के घर जाने वाले हो, तो अब मुझे क्यों बुलाओगे? यह उपालंभ सुन कर राजा चकित रह गया। फिर राजा ने संधिपालक को बुला कर रानी की भ्रान्ति दूर की। रानी को मना कर राजा हर्षित हुआ। संधिपालक को बहुत वस्त्राभूषण दे कर राजा ने उसका सम्मान किया।