________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (111) पास से निकल कर क्षत्रियकुंडग्राम नगर के मध्य में हो कर जहाँ स्वप्नपाठकों के घर थे, वहाँ जा कर स्वप्नलक्षण पाठकों से वह कहने लगा कि हे स्वप्नपाठको ! तुम्हें सिद्धार्थ क्षत्रिय राजा याद करते हैं, इसलिए मैं तुम्हें बुलाने आया हूँ। तब स्वप्न लक्षण पाठक सिद्धार्थ क्षत्रिय राजा के पारिवारिक पुरुष की वाणी सुन कर हृदय में बहुत हर्षित और सन्तुष्ट हुए। फिर स्नानमज्जन कर के, अपने घर के इष्टदेव को पूज कर के, कौतुक के लिए शरीर पर तिलक-छापा प्रमुख कर के, दही, दर्भ और सरसव मांगलिक के लिए ग्रहण कर के, दुष्ट स्वप्नप्रमुख का नाश करने रूप प्रायश्चित्त कर के, शुद्ध मांगलिक वस्त्र पहन कर, बहुमूल्य अलंकार धारण कर, सब शरीर शोभायमान कर के, तथा सरसव और दर्भ मंगलनिमित्त मस्तक पर धारण कर के, उछाल कर के अपने अपने घर से निकल कर क्षत्रियकुंडग्राम नगर के मध्य में हो कर जहाँ सिद्धार्थ राजा का मुख्य महल था, वहाँ द्वार पर जा कर सब इकट्ठे हुए। . ___ फिर सब मिल कर आपस में विचार करने लगे कि हम सब में किसी को बड़ा नहीं बनाया गया है, इसलिए किसी एक को बड़ा याने मुखिया बनाओ, क्योंकि मुखिया के बिना तो अप्रतिबंध टोली- अनुशासनहीन समूह माना जाता है। इसलिए आपस में स्वप्न के अर्थ का विचार कर मुखिया के मुख से कहलवाना, पर हर व्यक्ति अलग-अलग नहीं बोलना। यदि हर कोई अलग-अलग बोलेगा, तो हमें आदर प्राप्त नहीं होगा। 1. यहाँ कोई प्रश्न करे कि सिद्धार्थ राजा के स्नान-वर्णन में तो देवपूजा करना नहीं आया और इन निमित्तज्ञों के संक्षिप्त पाठ में देवपूजा आयी, तो क्या सिद्धार्थ राजा देवपूजा नहीं करते होंगे? इसका उत्तर कहते हैं कि उस समय तो सिद्धार्थ राजा श्रृंगार कर के सभा में जा रहे थे। इस कारण से वहाँ दही, दर्भ और सरसव के समान पाठ नहीं है। इससे जानने में आता है कि निमित्तज्ञों को पूछ कर उन्हें बिदा करने के बाद पूजा की होगी। क्योंकि सिद्धार्थ राजा भी श्री पार्श्वनाथ भगवान का श्रावक है। इससे श्री पार्श्वनाथजी की मूर्ति उनके घर में अवश्य होनी चाहिये। तथा आगे ‘ण्हाया कयबलिकम्मा' यह पाठ त्रिशलाजी के अधिकार में चला है। अथवा कर्ता ने भी यह पाठ सहज जान कर नहीं लिखा हो, ऐसा भी संभव है। फिर केवली जानें।