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________________ (104) श्री कल्पसूत्र- बालावबोध ग्रहण किया है। अतः जो आप कहते हैं, वह अर्थ सत्य है। इस प्रकार बार-बार कह कर, सपनों के अर्थ को अच्छी तरह अंगीकार कर, सिद्धार्थ राजा की आज्ञा ले कर, नाना प्रकार के मणियों से जडित सोने के बाजोठ पर से उठ कर नहीं उतावली नहीं धीमी ऐसी पूर्व में कही हुई रीति के अनुसार चलती हुई जहाँ उसका अपना शयनघर था वहाँ गयी। वहाँ जा कर, उत्तम सपने मैंने देखे हैं, इसलिए अब मुझे सोना नहीं चाहिये, यदि सो जाऊँगी, तो अन्य कोई पापरूप खोटे सपने आ जायेंगे और इन अच्छे सपनों का फल चला जायेगा; इसलिए देव-गुरु से संबंधित अच्छी, मंगलकारक, शुभकारक धर्मकथा कह कर रात पूरी करूँ, ऐसा सोच कर स्वप्नजागरण करते हुए वह स्वयं जागती रही। सिद्धार्थ राजा का कचहरी में आगमन इसके बाद प्रभात समय में सिद्धार्थ राजा ने पारिवारिक सेवक पुरुष को बुला कर कहा कि हे देवानुप्रिय! तुम शीघ्र जाओ और बाहरी उवट्टाणशाला (कचहरी) को गंधोदक से सींचो। वहाँ का कचरां-काँटा निकाल कर साफ करो। उसे लीपो। लीप कर प्रधान सुगंधित पंचवर्ण के फूलों के ढेर लगवाओ। कृष्णागर, कुंदरु और शिलारस का धूप करो और सुगंधित चूर्ण की गोली, अगरबत्ती लगाओ। सुगन्ध से अभिराम करो। सुगंध से वासित करो। यह काम तुम करो, अन्य किसी के द्वारा करवाओ और मेरी आज्ञा वापस तत्काल सौंपी। तब कौटुंबिक पुरुष यह सुन कर बहुत खुश हो कर हाथ जोड़ कर बोला कि जैसा आपने कहा सो मान्य है। फिर सिद्धार्थ राजा के पास से निकल कर जहाँ बाहरी सभागृह था, वहाँ जा कर गंधोदक छाँटना आदि सब काम राजा के हुक्म के अनुसार कर के वहाँ सिंहासन स्थापन कर के जहाँ सिद्धार्थ क्षत्रिय राजा थे, वहाँ जा कर हाथ जोड़ कर मस्तक पर अंजली कर के बोला कि हे स्वामिन्! जो आपने फरमाया था, वह सब काम हम कर आये हैं। ऐसा कह कर आज्ञा वापस सौंपी। इसके बाद कुछ लाल-सफेद-पीला प्रभात हुआ। सूर्यविकासी कमल खिल गये। चन्द्रविकासी कमल मुरझा गये। उज्ज्वल प्रभात हुआ। सूरज
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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