________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (105) ऊगा। वह सूर्य अशोक सरीखा लाल है, पलाश के फूल सरीखा लाल है, तोते के मुख सरीखा लाल है, आधी गुंजा सरीखा लाल है, ममोलीया एक जीव होता है, उसके जैसा लाल है, बफोरिया के फूल सरीखा लाल है, कबूतर के पैर और नेत्र सरीखा लाल है, जासूद के फूल सरीखा लाल है, हिंगल के ढेर सरीखा लाल है। ये पूर्व में कही जो वस्तुएँ हैं, वैसी किसी भी लाल वस्तु से अधिक लाल, कमलाकर नामक तालाब में अनेक कमलों को विकसित करने वाला ऐसे सूर्य का उदय हुआ। हजार किरणों का धारक, दिवस का कारक, तेज से जाज्वल्यमान, अंधकार का नाशक, चोर का प्रचार मिटाने वाला, कुमकुम की प्याली सरीखा लाल, उस सूर्य की नयी धूप से मानो संपूर्ण मनुष्यलोक कुमकुम सरीखा लाल हो गया है, ऐसा सवेरा हुआ। उस समय राजा ने शय्या से उठ कर बाजोठ पर पैर रखा। वह बाजोठ से नीचे उतरा। उतर कर जहाँ मल्लयुद्ध करने की शाला है, वहाँ जा कर मल्लयुद्धशाला में प्रवेश कर अनेक प्रकार के मल्लयुद्ध के करतब किये। फिर थक जाने के बाद सौ औषधिपाक तेल, हजार औषधिपाक तेल, सुगंधप्रधान तेलप्रमुख अन्य भी तेल जो धातुवृद्धि करने वाले हैं, जठराग्नि जगाने वाले हैं, मांसपुष्टि करने वाले हैं, बलवृद्धि करनेवाले हैं, सब इन्द्रियों सहित शरीर को उल्लसित करने वाले हैं, जिनके अभ्यंगन से त्वचा में तेजवृद्धि होती है, ऐसे अनेक जाति के तेलों से मालिश करवायी। तेलमालिश करने वाले कैसे हैं? वे बहुत चतुर, अति सुकोमल हाथपैर वाले, तेलमालिश करते वक्त हाथ के तल (हथेली) का मल शरीर में उतारने की क्रिया में दक्ष, परिपूर्ण हाथ-पैर वाले, अवसर के जानकार, शीघ्रता से कार्य करने वाले, सर्व मर्दन करने वालों में उत्कृष्ट, विवेकवान, बुद्धिमान, सयाने, पंडित, मालिश करते हुए न थकने वाले याने परिश्रम को जीतनेवाले इत्यादि गुणों के जानकार हैं। वे मालिश किस तरह करते हैं? जिससे हड्डी को सुख हो याने हड्डी को सुखकारक, मांस को सुखकारक, त्वचा को सुखकारक, रोम को