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________________ (94) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध परिवार कितना है तथा निवास किस प्रकार का है, सो कहते हैं- इस भरतक्षेत्र के छह खंड है। इसके अन्त में उत्तर दिशा की तरफ एक चुल्ल हिमवन्त पर्वत सोने का है। वह एक सौ योजन ऊँचा है तथा एक हजार बावन योजन और बारह कला अधिक इतना चौड़ा है। उसके मध्य में पद्मद्रह है। वह दस योजन गहरा, हजार योजन लंबा और पाँच सौ योजन चौड़ा है। वह संपूर्ण जल से भरा हुआ और शाश्वत है। उसका तल वज्ररत्नमय है। वह चारों ओर भी वज्रमय है। उस द्रह के मध्यभाग में एक कमल है। उस कमल की नाल दस योजन दीर्घ है। कुछ अधिक तीन योजन की परिधि है। दस योजन नाल पानी में है। उसका वज्ररत्नमय मूल है। रिष्ट रत्नमय मूल का कन्द है। नाल इन्द्रनील रत्नमयी है। बाहर की पंखुड़ियाँ लाल सुवर्णमयी हैं। कुछ जांबूनद सुवर्णमयी अभ्यन्तर की पंखुड़ियाँ हैं। उनमें सुवर्णमयी कर्णिका याने मध्य की डोड़ी है। वह दो कोस चौड़ी और एक कोस ऊँची है। उसमें लाल सुवर्णकेसर हैं। उस कर्णिका में श्री लक्ष्मीदेवी का भवन है। वह भवन एक कोस लंबा, आधा कोस चौड़ा और चौदह सौ चालीस धनुष्य ऊँचा है। उस भवन के दरवाजे पूर्व, दक्षिण और उत्तर दिशा में है। वे दरवाजे पाँच सौ धनुष्य ऊँचे और ढाई सौ धनुष्य चौड़े हैं। तथा उस घर में ढाई सौ धनुष्य प्रमाण एक मणिमय पीठिका है। उस पीठिका पर लक्ष्मीदेवी की शय्या है। ____ वहाँ इस देवी के मुख्य कमल की पंखुड़ी में उसके आभरणादि रखने के वलयाकार एक सौ आठ कमल हैं। उन कमलों की ऊँचाई मुख्य कमल से आधी जानना। इन एक सौ आठ कमलों से मूल कमल घिरा हुआ है। जैसे गढ़ से नगर घिरा हुआ होता है, वैसे ही जानना। इस मूलकमल के दूसरे वलय की पूर्व दिशा में महर्द्धिक चार देवियों के बसने के चार कमल हैं। वायव्य कोण, उत्तर दिशा और ईशान्य कोण इन तीन दिशाओं में देवियों के सामानिक देवों के बसने के चार हजार कमल हैं। श्रीदेवी की अभ्यन्तर पर्षदा के जो आठ हजार गुरुस्थानीय देव हैं, उनके बसने के आठ
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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