________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (93) लक्ष्मीदेवी के नाभि से ले कर स्तन तक रोमराजि है। प्रायः स्त्रियों के शरीर में रोमराजि नहीं होती। उसमें भी देवों के तो सर्वथा नहीं होती। फिर भी कवीश्वर श्रृंगार रस का वर्णन करते समय बोलते हैं। वह रोमराजि कैसी है? काजल के समान तथा भौरों की श्रेणी के समान श्याम है। मेघघटा सरीखी काली है। उसके नितंब सरल मिले हुए सुकोमल, मनोहर विलास सहित, सरस सूखे फूल सरीखे कोमल हैं। उसका नाभिमंडल सुन्दर है। मुट्ठी में समा जाये ऐसी कमर है। पेट में त्रिवली है। उनसे वह शोभायमान है। ___लक्ष्मीदेवी ने सर्वांगोपांग में अलंकार-आभूषण धारण किये हैं। वे आभूषण कैसे हैं? वे अनेक प्रकार की मणियों से जड़े हुए हैं और रत्नों से सोने में मढ़े हुए हैं। उसके हृदय में दो स्तन हैं। वे मानों सोने के कलश ही हैं। वे स्तन हार और कुन्दमाला से व्याप्त हैं। तथा शुभ मोतियों की जालियों से विराजमान सोनैयों की माला, जिसमें कहीं मणिसूत्र का धागा है, उससे कंठ शोभायमान है। उसके दो कानों में दो कुंडल शोभते हैं। ऐसे अलंकारों के समुदाय से लक्ष्मीदेवी का मुख शोभता है। जैसे राजा परिवार से शोभता है, वैसे ही लक्ष्मीदेवी का मुख आभूषणों से शोभता है। निर्मल कमल- पंखुडी सरीखे दीर्घ, तीक्ष्ण और अनियारे ऐसे उसके विशाल नेत्र हैं। उसके दो हाथों में कमल हैं। उनमें से वह पानी छिड़क रही है। लीला के लिए उसने अपने हाथ में कमलपंखा धारण किया है। जब वह लीला के लिए कमल हिलाती है, तब उसमें से सुगंध निकलती है। उस लक्ष्मीदेवी के मस्तक पर वेणीदंड बहुत निर्मलता से भरा हुआ श्याम रंग का है और वह लंबाई में कमर तक शोभता है। यह नख से ले कर सिर की वेणी तक वर्णन किया। ... ऐसी लक्ष्मीदेवी पद्मद्रह के कमल में निवास करने वाली, हिमाचल पर्वत पर बैठी हुई दस दिशाओं से शोभायमान है। हाथी आ कर सूंड में पद्मद्रह से जल भर कर लक्ष्मीदेवी को स्नान कराता है। ऐसी लक्ष्मीदेवी को त्रिशला क्षत्रियाणी ने चौथे सपने में देखा। . हिमाचल पर्वत पर लक्ष्मीदेवी का निवास है। वहाँ इस देवी का