________________ (83) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध कहने लगे कि अब हम किसे पूजें? उस समय श्री ऋषभदेवजी के समय में श्रावक ब्राह्मण कहलाते थे, उनका उदाहरण ले कर जो स्थविर श्रावक थे; उनके पास जा कर लोग धर्म पूछने लगे। वे भी जैसा जानते थे; वैसा ही उन्हें बताने लगे। लोग भी उन्हें धन-वस्त्रादि दान देने लगे। इससे गर्वित हो कर वे स्वयं के मनःकल्पित नये शास्त्र बना कर कहने लगे कि जो कोई हमें पृथ्वी, शय्या, मन्दिर, सुवर्ण, रूपा, लोहा, कपास, गाय, कन्या, अश्व और गज दान करता है, वह इस लोक तथा परलोक में महाफल पाता है। हम ही सुपात्र हैं। यह उपदेश सुन कर लोगों ने उन्हें गुरुरूप में मान लिया। इस तरह असंयती की पूजा चली। फिर कुछ काल बाद तो साधु धर्म का ही विच्छेद हो गया और जैन को छोड़ कर पाखंडी-संन्यासी प्रमुख विपरीत दर्शन वाले ही पूजे जाने लगे। प्रथम सदा-सर्वदा संयती की ही पूजा होती थी; पर उसका विच्छेद हो जाने पर असंयतियों की पूजा श्री शीतलनाथ जिन का तीर्थ प्रारंभ होने तक चली। यह आश्चर्य हुआ। यहाँ जो साधु न होते हुए भी साधु के रूप में पूजे जायें; यह आश्चर्य जानना तथा श्री तीर्थंकरों का तीर्थ-विच्छेद नहीं होता और वह हुआ, सो यह भी आश्चर्य जानना। यह दसवाँ अच्छेरा है। इस तरह ये दस आश्चर्य इस चौबीसी में हुए। पुनः अनन्त काल बाद होंगे। ___ अब दस अच्छेरे किस किस तीर्थंकर के समय में हुए ? सो कहते हैंश्री ऋषभदेव के समय में एक सौ आठ सिद्ध हुए। श्री शीतलनाथ के समय में हरिवंश कुल की उत्पत्ति हुई। श्री मल्लीनाथ के समय में स्त्री तीर्थंकर हई। श्री नेमिनाथ के समय में अमरकंका नगरी में श्री कृष्ण का गमन हुआ और श्री सुविधिनाथ के शासनान्तराल में असंयती ब्राह्मणों की पूजा हुई। यह असंयती पूजा तो श्री आदिनाथ के समय में भी मरीचि-कपिलादि की सुनने में आती है। ऐसा अधिकतर अन्य तीर्थंकरों के समय में भी प्रवाह से होता है। और पाँच अच्छेरे श्री महावीरस्वामी के समय में हुए। प्रभु का गर्भपरावर्तन .. अब इन्द्र महाराज विचार करते हैं कि भगवान श्री महावीरस्वामी