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________________ (82) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध कर बैठा। तब सामानिक देवों ने आ कर उसे बधाया और कहा कि आप शोक क्यों करते हैं? तब चमरेन्द्र ने अपनी बीती बात सब कह सुनायी और कहा कि हे देवानुप्रियो ! मैं जीवित लौटा सो यह सब श्री वीर भगवान का उपकार है। इसलिए उन्हें वन्दन करने चलो। यह कर सब देव देवियों को ले कर महा ऋद्धि सहित जा कर श्री महावीर को वन्दन कर नाटक कर के वह अपने स्थान पर गया। इस तरह पातालवासी चमरेन्द्र ऊँचे सौधर्म देवलोक में जाता नहीं है, पर इस अवसर्पिणी काल में गया। इसलिए यह सातवाँ चमरोत्पात नामक आश्चर्य जानना। ___ अब आठवाँ अच्छेरा कहते हैं- अष्टापद पर्वत पर उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष्य अवगाहना वाले एक श्री ऋषभदेव स्वयं और भरत को छोड़ कर निन्यानबे भगवान के पुत्र तथा आठ भरत के पुत्र सब मिल कर एक सौ आठ पुरुष एक समय में सिद्धि को प्राप्त हुए। मध्यम अवगाहना वाले सिद्ध होते हैं, पर उत्कृष्ट अवगाहना वाले एक समय में एक सौ आठ सिद्ध नहीं होते। मात्र दो ही सिद्ध होते हैं। पर यहाँ एक सौ आठ सिद्ध हुए। अतः यह आठवाँ अच्छेरा जानना। अब नौवाँ अच्छेरा कहते हैं- श्री महावीरदेव का कौशांबी नगरी में समवसरण लगा, तब चन्द्रमा और सूर्य जिनके ज्योतिष चक्र में शाश्वत विमान हैं; वे उन्हीं विमानों में बैठ कर पश्चिम पोरिसी में. श्री महावीर को वन्दन करने के लिए आये। यहाँ कोई कोई ऐसा कहते हैं कि उत्तर वैक्रिय विमान में बैठ कर आये;पर ऐसा नहीं जानना। वे मूल विमान में बैठ कर ही वन्दन करने आये थे। वे मूल विमान में कभी नहीं आते; पर आये। इसलिए यह अच्छेरा जानना। ___ अब दसवाँ अच्छेरा कहते हैं- असंयती, आरंभी, परिग्रहवन्त, अब्रह्मचारी, गृहस्थवेश में रहे हुए लोगों की पूजा सत्कार सो असंयतीपूजा नामक दसवाँ अच्छेरा है। वह इस प्रकार है- श्री सुविधिनाथ के निर्वाण के बाद बहुत काल बीतने पर हुंडावसर्पिणी के दोष के कारण साधुओं का विच्छेद हो गया। सब साधु काल कर गये। कोई भी साधु शेष न रहा। तब लोग
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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