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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (81) चाहिये। यह सोच कर हजार देव भी जिसे उठा न सकें ऐसा अग्निज्वाला से भी अधिक देदीप्यमान वज्र इन्द्र ने चमरेन्द्र पर छोड़ा। उसे अपनी ओर आते देख कर भयभीत हो कर चमरेन्द्र सिर नीचे और पैर ऊपर कर के वहाँ से भागा। इस स्थिति में कहीं उसके गहने गिर गये और कहीं वह स्वयं गिरते हुए भागने लगा। स्वभाव से चमरेन्द्र की नीचे जाने की और वज्र की ऊँचे जाने की शक्ति अधिक होती है। इससे उनके बीच कुछ अन्तर रह गया। तब चमरेन्द्र अपने लाख योजन वाले विकुर्वित शरीर का संहरण कर के 'शरणं शरणं' बोलते हुए कुंथुआ जितना सूक्ष्म हो कर श्री महावीरस्वामी के चरणों के मध्य प्रवेश कर गया। इस तरह वज्र से डरते हुए वह श्री महावीरस्वामी की शरण में बैठ गया। इतने में शक्रेन्द्र को यह मालूम हो गया कि चमरेन्द्र की शक्ति इतनी नहीं है कि वह किसी की शरण के बिना यहाँ चला आये। इसलिए निश्चय ही यह श्री अरिहंत अथवा श्री अरिहंत की प्रतिमा या किसी भावित अनगार की शरण ले कर यहाँ आया होगा। तो अब उनकी आशातना न हो; इसलिए अवधिज्ञान का उपयोग कर के देखा तो मालूम हुआ कि वह श्री महावीरस्वामी की शरण ले कर आया था। यह जान कर तत्काल वज्र के पीछे शक्रेन्द्र भी गया और उसने श्री महावीरस्वामी से चार अंगुल दूर रहे हुए वज्र को वापस खींच लिया। क्योंकि महावीरस्वामी से चार अंगल की दूरी पर वज्र परिभ्रमण कर रहा था; पर तीर्थंकर की आशातना टालने के लिए वह तीर्थंकर के पास नहीं जा रहा था। इस तरह चमरेन्द्र को श्री महावीर की शरण में आया जान कर छोड़ दिया। फिर भगवान से कहा कि हे प्रभो ! मेरा अपराध क्षमा करना। इतना कह कर कुछ दूर जा कर पैर धरती पर पछाड़ कर वह चमरेन्द्र से बोला कि अरे चमर ! अब श्री वीर भगवान की कृपा से तू मुझसे भय मत रखना। इतना कह कर भगवान को वन्दन कर के उनकी आज्ञा ले कर शक्रेन्द्र अपने स्थान पर गया। फिर चमरेन्द्र भी नाना प्रकार से भगवान की स्तुति कर के, वन्दन कर के अपनी चमरचंचा राजधानी में आया। वहाँ अपने सिंहासन पर उदास हो
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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