________________ (80) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध हैं जिसके ऐसा यह सौधर्माधिप है। यह अनादिकालीन मर्यादा है, इसलिए यहाँ तुम्हें क्रोध नहीं करना चाहिये। तुम्हारे जैसे इन्द्र जो पूर्व में हुए हैं; उन पर भी इसी तरह पैर रहते आये हैं। इसलिए ईर्ष्या मत कीजिये। इस तरह देवों ने समझाया, तो भी चमरेन्द्र क्रोधावेश में बोला कि जिन पर सौधर्मेन्द्र पैर रखता है, ऐसे पूर्व में हुए चमरेन्द्र अलग हैं और मैं अलग हूँ। इसलिए मैं वहाँ जा कर सौधर्मेन्द्र को उसके पैर खींच कर नीचे गिरा दूंगा। ऐसा कह कर आयुधशाला में जा कर परशु-शस्त्र हाथ में ले कर वह सौधर्म देवलोक में जाने लगा। उस समय सब देवों ने उसे रोका; पर उसने किसी की बात नहीं मानी। . उस समय सुसुमार नगर में श्री महावीर प्रभु प्रतिमा-स्थित रहे थे। उनकी शरण ले कर एक लाख योजन का रूप बना कर ब्रह्मांड फूट जाने जैसा शब्द करते हुए, पैरों से धरती को कँपाते हुए, हाथों से ताल ठोंकते हुए, मेघ के समान गर्जना करते हुए, बिजली के समान झबकार करते हुए, ज्योतिषचक्र को त्रासित करते हुए, देवताओं को भयभ्रान्त करते हुए, देवियों को डराते हुए, कोलाहल करते करते परिघायुध घुमाते हुए गाँध बन कर वह सौधर्मेन्द्र की तरफ दौड़ा। उसने अपना एक पैर सौधर्मावतंसक विमान की पद्मवरवेदिका पर और दूसरा पैर सौधर्मसभा में रखा। तब सौधर्म देवलोक के सब देव भयभ्रान्त हो कर जहाँ तहाँ भाग गये। उस समय चमरेन्द्र बोला कि अरे देवो ! तुम्हारा इन्द्र कहाँ है? काली अमावस्या का जन्मा वह इन्द्र मुझे बताओ; तो अभी मैं उसे परशु से काट डालूँ। देवों से ऐसा कह कर वह मुख से अग्निज्वाला निकालने लगा। उसके लंबे होठ, कुएँ जैसे गाल, खड्डे जैसे नाक के नथुने, अग्नि जैसे नेत्र, सूप जैसे कान, कुश जैसे दाँत, गले में सर्प, हाथ में बिच्छू के अलंकार, कहीं चूहे बँधे हुए, कहीं नेवले और गोह बँधे हुए और उसका काला रूप देख कर देव-देवियाँ कोलाहल करने लगे। कोलाहल सुन कर इन्द्र ने अवधिज्ञान से देखा तो उसने जान लिया कि यह तो चमरीया इन्द्र अधजल गगरी के समान छलक रहा है। इसलिए अब इसे सजा देनी