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________________ (79) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध इससे मरने के बाद नरक में जायेगा, तो मेरा बैर वसूल हो जायेगा। यह सोच कर उन दोनों का नाम क्रमशः हरि और हरिणी रख कर वह देव अपने स्थान पर चला गया। लोगों ने भी देव के कहे अनुसार उसे मांसमदिरासेवन करना सिखाया। इससे वे मांसलोलुप बन गये। फिर इस हरिराजा के जो पुत्रादि हुए उनका कुल हरिवंश कहलाया। ये हरि और हरिणी मरण के बाद नरक में गये। युगलिक नरक में जाते नहीं है, पर ये दोनों गये; इसलिए यह आश्चर्य जानना। अब सातवाँ अच्छेरा कहते हैं- इस भरतक्षेत्र के विभेल सन्निवेश में पूरण नामक एक सेठ रहता था। वह एक दिन पिछली रात्रि को जाग कर कुटुंब जागरण करते करते मन में सोचने लगा कि मेरे घर में जो बहुत धनपरिवार है, सो मैंने पूर्वभव में कोई अच्छी धर्मकरनी की थी, उसके योग से वह सब प्राप्त हुआ है। इसलिए अब पुनः कुछ धर्म करूँ, तो आगे भी प्राप्त होगा। यह सोच कर सुबह के समय स्वजनादि से पूछ कर पुत्र को कुटुंब का भार सौंप कर उसने तापसी दीक्षा ग्रहण की। फिर ऐसा अभिग्रह किया कि यावज्जीव छ? के पारणे छट्ठ याने दो दो उपवास के अन्तर से पारणा करना। पारणा के दिन एक चौकोन पात्र ले कर भिक्षा माँगना। उसमें पहले कोने में जो भिक्षा मिले, वह जलचर जीवों को खिला देना, पर स्वयं न खाना। इसी प्रकार दूसरे कोने में जो भिक्षा पड़े, वह पक्षियों को खिला देना तथा तीसरे कोने में जो भिक्षा पड़े, वह अभ्यागत को खिला देना और चौथे कोने में जो भिक्षा पड़े उसे जल से धो कर स्वयं खाना। इस तरह बारह वर्ष तक तपस्या कर के मृत्यु के बाद वह चमरचंचा राजधानी में चमरेन्द्र के रूप में भवनपति देवों में उत्पन्न हुआ। वहाँ उत्पन्न होते ही उसने अवधिज्ञान से देखा, तो सौधर्मेन्द्र के पैर अपने सिर पर दिखाई दिये। इससे उसे महाक्रोध उत्पन्न हुआ। फिर सब सामानिक देवों को बुला कर उसने कहा कि हे देवो ! यह कौन दुष्ट हीनपुण्य का स्वामी है, जो मेरे सिर पर पैर रख कर बैठा है? तब देव बोले- हे स्वामी ! पूर्वजन्म में संपादन किये हुए पुण्य से सब से अधिक समृद्धि और पराक्रम
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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