________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (71) को लाने की प्रार्थना की। तब देवता ने कहा कि वह महासती है। इसलिए शीलभंग नहीं करेगी। तुम व्यर्थ उसे क्यों बुलाते हो? तो भी पद्मनाभ ने बहुत हठ किया। तब वह देवता द्रौपदी को अवस्वापिनी निद्रा दे कर, जहाँ वह सोई हुई थी, वहाँ से उसे पलंग सहित उठा कर पद्मनाभ राजा की अशोकवाटिका में रख कर राजा से बोला कि तुमने मेरे हाथों बुरा काम करवाया है। इसलिए अब मुझे कभी याद मत करना। यदि बुलाओगे तो भी मैं नहीं आऊँगा। यह कह कर वह देवता अपने स्थान पर चला गया। कुछ देर बाद द्रौपदी निद्रा से जागृत हो कर सोचने लगी कि मैं यहाँ कहाँ आ गयी? उस समय पद्मनाभ बोला कि मैंने तुझे मेरे साथ भोग भोगने के लिए देवता के द्वारा यहाँ मँगवाया है। तब द्रौपदी बोली कि तू छह महीने तक मेरा नाम मत लेना। मेरी मदद करने वाले पाँच पांडव तथा श्रीकृष्ण हैं। यदि वे छह महीने में यहाँ न आयें; तो तू जैसा कहेगा वैसा होगा। तब पद्मनाभ ने भी 'हाँ कहा और सोचा कि यहाँ इसकी खबर लेने कौन आने वाला है? और जबरदस्ती से प्रीति भी नहीं होती। ऐसा जान कर वह द्रौपदी को अपने महल में ले गया। द्रौपदी भी छट्ट-अट्ठम तप और पारणे में आयंबिल करने लगी। ___प्रभात के समय हस्तिनागपुर में द्रौपदी महल में दिखाई नहीं दी; तब पांडवों ने बहुत खोज करवायी, पर कहीं भी पता नहीं लगा। पांडवों की माता कुंतीजी ने द्वारिका में जा कर श्रीकृष्ण वासुदेव से कहा कि हे पुत्र ! रात को जब द्रौपदी सोयी हुई थी; तब उसे कोई देव, दानव, राक्षस अथवा विद्याधर उठा ले गया है। हमने सब जगह ढूँढा, पर वह कहीं नहीं मिली। तब श्री कृष्णजी कुछ हास्यपूर्वक बोले कि पाँच पांडव एक द्रौपदी को भी सम्हालने में समर्थ नहीं हुए? मैं तो मेरी बत्तीस हजार स्त्रियों की रक्षा करता हूँ। यह सुन कर कुन्तीजी बोलीं कि हे वत्स ! इस अवसर पर हास्य काम का नहीं है। तुम तुरन्त द्रौपदी की खोज करवाओ। फिर श्री कृष्णजी ने भी बहुत खोज करवायी; पर कहीं पता नहीं लगा। अन्त में वे भी चिन्तातुर हो कर बैठ गये।