________________ (70) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध में जा पहुँचा। उस समय वहाँ कपिल वासुदेव का सेवक पद्मनाभ राजा राज करता था। वह अपनी सात सौ रानियों के साथ उद्यान में क्रीड़ा कर रहा था। उस समय नारद भी वहाँ पहुँच गया। पद्मनाभ राजा ने उसे वन्दन कर के पछा कि हे नारदजी ! जैसा मेरा अन्तःपुर है, वैसा क्या तुमने अन्यत्र कहीं देखा है ? तब नारद ने यह जान लिया कि यह राजा स्त्रियों का लोलुपी है। ऐसा जान कर अवसर देख कर नारद ने कहा कि हे राजन्! तू तो कुएँ के मेंढ़क जैसा दीखता है। जैसे कोई एक समुद्र का मेंढक कुएँ के मेंढक के पास गया। तब उससे कुएँ के मेंढक ने पूछा कि तू कहाँ रहता है और कहाँ से आया है? तब उसने कहा कि मैं समुद्र में रहता हूँ और वहीं से आया हूँ। फिर कुएँ के मेंढक ने पूछा कि तेरा समुद्र कितना बड़ा है? तब उसने कहा कि बहुत बड़ा है। कुएँ के मेंढक ने हाथ-पैर फैला कर पूछा कि क्या इतना बड़ा है? तब समुद्र के मेंढक ने कहा कि इससे तो बहुत ही बड़ा है। कुएँ के मेंढक ने कुएँ के चारों ओर छलाँग मार कर पूछा कि क्या इतना बड़ा है? तो भी उसने कहा कि इससे तो बहुत बहुत बड़ा है। तब कुएँ का मेंढक रोषपूर्वक बोला कि अरे असत्यवादी ! तू यहाँ से दूर चला जा। मेरी छलाँग से भी क्या कोई बड़ा हो सकता है? बिलकुल नहीं। इसलिए तू झूठ बोलता है। ऐसे ही हे राजन् ! तूने भी कुएँ के मेंढक की तरह इतनी ही स्त्रियाँ देखी है; इसलिए इनका ही बखान करता है। परन्तु पाँच पांडवों की स्त्री द्रौपदी ऐसी है कि उसके एक अंगूठे के नखाग्र के रूप जितना भी तेरी किसी रानी का रूप नहीं है। उस द्रौपदी के समान तीन लोक में किसी भी स्त्री का रूप नहीं है। इतना कह कर नारद चलता बना। फिर पद्मनाभ राजा कामपीड़ित हो कर चिन्तन करने लगा कि ऐसी स्त्री के बिना जन्म निष्फल है। पर द्रौपदी को पाने का उसे कोई उपाय नहीं सूझा। तब अट्ठम तप कर के उसने पूर्व भव के साथी देवता का आराधन किया। देवता प्रत्यक्ष आ कर हाजिर हुआ और कहने लगा कि मुझे क्यों याद किया है? जो भी काम हो, सो बताओ। पद्मनाभ राजा ने उससे द्रौपदी