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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (69) प्राप्त कर वह नरक में गयी। वहाँ से च्यव कर अनेक तिर्यंचादि भव कर के एक सेठ के घर अत्यन्त स्वरूपवान सुकुमालिका नामक पुत्री हुई। सेठ ने उसी गाँव के एक अन्य सेठ के पुत्र के साथ उसका विवाह कर दिया। वह रात के समय सोने गया, तब सुकुमालिका का स्पर्श होते ही उसे दाहज्वर चढ़ गया। इस कारण से वह उसे छोड़ कर चला गया। बाद में सुकुमालिका को शोक करते देख कर उसके पिता ने उसका विवाह एक भिक्षुक के साथ कर दिया, पर वह भी उसे छोड़ कर भाग गया। फिर दुःखगर्भित वैराग्य प्राप्त कर सुकुमालिका साध्वी बन गयी। गुरुणी के ना कहने पर भी वह जंगल में तप करने गयी। वहाँ एक वेश्या की हाजिरी में रहे हुए पाँच पुरुषों को देख कर सुकुमालिका ने ऐसा नियाणा किया कि मेरे तप का प्रभाव हो, तो अगले भव में मुझे भी पाँच भरतार हों। अन्त में अनशन कर वह ईशान देवलोक में गयी। वहाँ से च्यव कर यहाँ द्रौपदी हुई है। पूर्वकृत नियाणा के योग से वरमाला पाँच जनों के कंठ में पड़ी। उस समय देवताओं ने यह आकाशवाणी की कि द्रौपदी पंचभरतारी होते हुए भी सती है। पाँचों पांडव द्रौपदी को ब्याह कर हस्तिनागपुर ले आये और वहाँ सुखपूर्वक रहने लगे। ___एक दिन जिसकी मुखाकृति सौम्य है, पर जो मन में कपट बहुत रखता है, वल्कलचीर पहनता है, जिसने काले मृग की खाल का उत्तरासंग किया है, जिसका जटाजूट महाकांतिवान है और जो कलह-कोलाहल कराने वाला है, ऐसा नारदऋषि आकाशमार्ग से पांडुराजा की सभा में आ पहुँचा। तब पांडवों सहित सब सभाजनों ने खड़े हो कर उसका आदरसत्कार किया। जब वह द्रौपदी से मिलने गया, तब उसे असंयती जान कर द्रौपदी ने उसकी वन्दना-पूजा नहीं की। वह उठ कर खड़ी भी नहीं हुई तथा उसने उसे बुलाया तक नहीं। इससे नारद क्रोधित हो गया। वह विचार करने लगा कि यह द्रौपदी पाँच भरतार पा कर मस्त हो गयी है। इससे गर्वित हो कर बैठी है। तो अब मैं इसे संकट में डाल दूं। यह सोच कर वह धातकीखंड के पूर्व भरतक्षेत्र की अमरकंका नगरी
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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