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________________ (72) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध इतने में नारद ऋषि वहाँ आये। उन्होंने श्री कृष्णजी से चिन्ता का कारण पूछा। तब कृष्णजी ने कहा कि क्या तुमने कहीं किसी स्थान पर द्रौपदी को देखा है? तब नारदजी बोले कि वह पापिनी किसी साध को भी बुलाती नहीं थी, इसलिए दुख में पड़ी होगी। फिर भी मैं तो पूरी तरह पहचानता नहीं हूँ, पर धातकीखंड में अमरकंका नगरी में द्रौपदी जैसी कोई स्त्री मैंने देखी है अवश्य। कौन जाने वह वही हो। यह कह कर नारदजी वहाँ से चले गये। फिर श्री कृष्ण ने सोचा कि यह अकृत्य अवश्य नारद का ही किया हुआ लगता है। इसलिए द्रौपदी अमरकंका में ही होगी। ऐसा जान कर पांडवों को ले कर सेना सहित श्री कृष्णजी समुद्रतट पर पहुँचे। समुद्र पार करने के लिए अट्ठम तप कर के उन्होंने लवणाधिप देव को बुलाया। वह प्रकट हो कर बोला कि कहिये, क्या काम है? मैं करने के लिए तैयार हूँ। तब कृष्णजी ने सब वृत्तान्त निवेदन कर के कहा कि हमें धातकीखंड में जाना है। इसलिए हमें और हमारी सेना को समुद्र में से जाने के लिए मार्ग दीजिये। तब वह देव बोला कि आप लोग वहाँ जाने का कष्ट क्यों उठाते हैं? मैं स्वयं वहाँ जा कर द्रौपदी को ला कर आपको सौंप दूंगा। और फिर यदि आपकी आज्ञा हो, तो अमरकंका नगरी सहित पद्मनाभ को मैं समुद्र में फेंक दूं। तब श्री कृष्ण बोले कि हे देव ! तुम वास्तव में ,ऐसे ही शक्तिमान हो। इसमें कोई सन्देह नहीं है। तथापि हम पाँच पांडव सहित छह जनों को जाने का मार्ग दो; तो हमारी वहाँ जाने की इच्छा है। यह सुन कर सुस्थित देव ने उन छह जनों के छह रथ निकलने के लिए मार्ग बना दिया। फिर पांडव सहित श्री कृष्ण समुद्र पार कर अमरकंका नगरी के उद्यान में पहुँचे। वहाँ से दारुक नामक सारथी को दूत बना कर पद्मनाभ के पास भेजा। उस दूत ने वहाँ जा कर पैर पर पैर चढ़ा कर और ललाट पर तीन रेखाएँ चढ़ा कर कहा कि हे पद्मनाभ ! श्रीकृष्ण वासुदेव ने तुम्हें कहलवाया है कि तुम पांडवों की स्त्री द्रौपदी उठा लाये हो। तुमने यह बहुत अयोग्य काम किया है। फिर भी अभी कुछ बिगड़ा नहीं है। इसलिए तुम आ कर
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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