________________ (67) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध घेर लिया। कुंभराजा भी बाहर आ कर युद्ध करने लगा, पर युद्ध में हार जाने के कारण उसने पुनः नगरी में प्रवेश कर लिया। तब मल्लीकुमारी ने छहों राजाओं से कहलवाया कि आप सब लोग मेरे रत्नघर में आ जायें। फिर वे छहों राजा छह द्वारों में से जुदे जुदे आये। वहाँ मल्लीकुमारी की मूर्ति देख कर वे व्यामोहित हुए। इतने में मल्लीकुमारी ने वहाँ आ कर उस पुतली के माथे पर से ढक्कन खोल दिया। उस समय उस सड़े हुए अनाज में कीड़े पड़े थे। इस कारण से चारों ओर दुर्गंध फैल गयी। तब सब जनों ने मुँह के आगे कपड़ा लगा कर थूथकार किया और वे बड़े दुःखी हुए। तब मल्लीकुमारी ने कहा कि हे भद्रो! यह पुतली रत्नमयी होने पर भी नित्यप्रति एक कवल आहार के संयोग से ऐसी दुर्गंध छोड़ रही है, तो मेरे शरीर में तो नित्यप्रति सेरभर अनाज जाता है। इसलिए यह मलमूत्र का भंडार ही है। इसमें तुम रागांध क्यों हुए हो? इस प्रकार प्रतिबोध कर के उन्हें पूर्वभव कह सुनाये। इससे उन छहों राजाओं को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। उन्होंने अपने पूर्वभव देखे। फिर वे छहों कहने लगे कि अब हमें पार करो। तब मल्लीकुमारी ने कहा कि अब तो तुम लोग घर जाओ, पर जब मुझे केवलज्ञान उत्पन्न हो, तब आना। मैं तुम्हें दीक्षा दूंगी। फिर वे छहों राजा अपने अपने स्थान पर गये। . फिर मल्लीकुमारी ने संवत्सरी दान दे कर तीन सौ राजपुत्रों के साथ मार्गशीर्ष सुदि एकादशी के दिन दीक्षा ग्रहण की। उसी दिन उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। फिर उन छहों मित्रों ने आ कर श्री मल्लीनाथ के पास दीक्षा ली। भगवान ने उन छहों को गणधर बनाया। वे उसी भव में मोक्ष गये। ये श्री मल्लीनाथ स्त्रीवेद में उन्नीसवें तीर्थंकर हुए। उनके समवसरण में स्त्रियों की पर्षदा आगे बैठती थी और पुरुषों की पर्षदा पीछे बैठती थी। स्त्रीवेद में कोई भी तीर्थंकर नहीं होता, पर मल्लीनाथजी हुए। यह दूसरा अच्छेरा जानना। तीसरा अच्छेरा- किसी भी तीर्थंकर का गर्भपलटा नहीं होता। पर यहाँ श्री महावीरस्वामी को बयासी रात्रि के पश्चात् देवानन्दा की कोख से