________________ (66) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध मल्लीकुमारी के कुंडल दिव्य हैं। वे हमसे जोड़े नहीं गये, इसलिए हमें देश छोड़ना पड़ा है। फिर उन्होंने मल्लीकुमारी के रूप का वर्णन किया। तब वाराणसी के राजा ने भी मल्लीकुमारी की याचना के लिए कुंभराजा के पास दूत भेजा। इति तृतीय दूत / / 3 / / _____ अब रुक्मी राजा ने अपनी पुत्री को चार महीने तक उबटन लगा कर पीठी करा कर और अलंकार पहना कर दूत से पूछा कि हे दूत! ऐसा रूप तूने कहीं देखा है? तब दूत बोला कि मल्लीकुमारी के लाखवें अंश जितना भी यह रूप नहीं है। यह सुन कर रुक्मी राजा ने भी कुंभ राजा के पास दूत भेज कर मल्लीकुमारी की याचना करवायी। इति चतुर्थ दूत / / 4 // . ___कुंभ राजा के पुत्र ने अपनी चित्रशाला चित्रित करवायी। वहाँ चित्रकार ने मल्लीकुमारी का अंगूठा देखा। उस पर से उसने मल्लीकुमारी के सब अंगों का स्वरूप चित्रित कर दिया। एक बार मल्लीकुमारी के भाई ने क्रीडा करते समय मल्लीकुमारी का रूप चित्रशाला में देखा, तो उसे क्रोध आ गया। उसने चित्रकार के हाथ का अंगूठा काट कर उसे देश से निकाल दिया। चित्रकार हस्तिनापुर के अदीनशत्रु राजा से मिला और उसके आगे मल्लीकुमारी के रूप का वर्णन किया। यह सुन कर उसने भी मल्लीकुमारी की याचना करने के लिए कुंभ राजा के पास दूत भेजा। इति पंचम दूत।॥५॥ एक दिन धर्मचर्चा करते समय एक परिव्राजिका को मल्लीकमारी ने जीत लिया। इससे मानभ्रष्ट हो कर क्रोध में आ कर उसने कपिला नगरी जा कर जितशत्रु राजा के आगे मल्लीकुमारी के रूप का वर्णन किया। इस कारण से उसने भी मल्लीकुमारी को याचने के लिये कुंभ राजा के पास दूत भेजा। इति षष्ठ दूत / / 6 / / इस तरह छहों दूत कुंभराजा के पास समकाल में आ गये। कुंभ राजा ने सब दूतों से साफ कह दिया कि मैं मेरी कन्या किसी को भी देने वाला नहीं हूँ। इस तरह अपमानित कर के उन्हें भगा दिया। फिर उन छहों रहनों ने अपनी अपनी तोर सहित काल में भाका मिथिला नग्री को