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________________ अह दसमं अज्झयणं अथ दशम अध्याय यह दसवां अध्ययन भी पहले नौ अध्ययनों की भाँति सुपात्रदान और संयमाराधन के परिणाम को हृदयंगम कराने के लिए एक धार्मिक कथासंदर्भ के रूप में अंकित किया गया . . है। इस अध्ययन में वर्णित हुए वरदत्त कुमार के जीवनवृत्तान्त का विवरण निम्नोक्त है मूल-दसमस्स उक्खेवो। एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं साएयं णामं णगरं होत्था। उत्तरकुरू उजाणे। पासामिओ जक्खो। मित्तणंदी राया। सिरीकन्तादेवी। वरदत्ते कुमारे। वरसेणापामोक्खाणं पंचदेवीसयाणं रायवरकन्नगाणं पाणिग्गहणं। तित्थगरागमणं।सावगधम्म (पुव्वभवो।सयदुवारे णगरे। विमलवाहणे राया। धम्मरुई अणगारे पडिलाभिए। मणुस्साउए बद्धे। इहं उप्पन्ने। सेसं जहा सुबाहुस्स कुमारस्स। चिन्ता जाव पव्वज्जा। कप्पंतरे। तओ जाव सव्वट्ठसिद्धे। तओ महाविदेहे जहा दढपइण्णे जाव सिज्झिहिइ 5 / एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, त्ति बेमि। सेवं भंते ! सेवं भंते ! सुहविवागा। ॥दसमं अज्झयणं समत्तं॥ छाया-दशमस्योत्क्षेपः। एवं खलु जम्बूः ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये साकेतं नाम नगरमभूत् / उत्तरकुरु उद्यानम्। पाशामृगो यक्षः। मित्रनन्दी राजा। श्रीकान्ता देवी। वरदत्तः कुमारः। वरसेनाप्रमुखाणां पंचदेवीशतानां राजवरकन्यकानां पाणिग्रहणं। तीर्थंकरागमनम्। श्रावकधर्मम्। पूर्वभवः। शतद्वारं नगरम्। विमलवाहनो राजा। धर्मरुचिरनगारः प्रतिलाभितः। मनुष्यायुर्बद्धम् / इहोत्पन्नः। शेषं यथा सुबाहो: कुमारस्य 990 ] श्री विपाक सूत्रम् / दशम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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