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________________ ग्रहण किया, इत्यादि मोक्षपर्यन्त सम्पूर्ण वृत्तान्त प्रथम अध्ययन गत सुबाहुकुमार के वर्णन के समान ही समझना चाहिए। केवल नाम और स्थानादि का अन्तर है। अन्त में यह इसी भव में सिद्ध गति को प्राप्त हो जाता है। निक्षेप-शब्द का अर्थ पूर्व में किया जा चुका है। प्रस्तुत में निक्षेप शब्द से अभिमत सूत्रपाठ निम्नोक्त है ___-एवं खल जम्बू / समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सम्पत्तण सहविवागार्ण भवमस्स अमायणस्स अपमड़े पण्णते, तिबेमि-अर्थात् आर्य सुधर्मा स्वामी फरमाने लगे कि हे जम्बू / यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के नवम अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ प्रतिपादन किया है। मैंने जैसा भगवान् से सुना था वैसा तुम्हें सुना दिया है। इस में मेरी अपनी ओर से कोई कल्पना नहीं की गई है। ___ -पाणिग्गाणं जाव पुव्वभवो-तथा-पडिलाभिए जाव सिद्ध-यहाँ पठित जावपावत् पद से संसूचित पदार्थ आठवें अध्ययन में लिखा जा चुका है। अन्तर मात्र इतना ही है कि वहाँ श्री भद्रनन्दी का वर्णन है जब कि प्रस्तुत में श्री महाचन्द्र कुमार का। तथा वहाँ भद्रनन्दी के नगर का, माता-पिता का, उस के पूर्वभवगत नामादि का उल्लेख है, जब कि यहाँ महायन्द्र के नगर का, माता-पिता का, तथा महाचन्द्र के पूर्वभवीय नाम आदि का। सारांश यह है कि नामगत भिन्नता के अतिरिक्त अर्थगत कोई भेद नहीं है। प्रस्तुत अध्ययन में भी सुपात्रदान को सर्वोत्तम प्रमाणित करने के लिए एक धार्मिक आख्यान की संक्षिप्त रूप से संकलना की गई है। यह नवम अध्ययन का पदार्थ है। ॥नवम अध्ययन समाप्त // वित्तीय श्रुतस्कंध] श्री विधाक सूत्रम् / मवा अध्याय
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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