________________ चिन्ता / यावत् प्रव्रज्या कल्पान्तरे ततो यावत् सर्वार्थसिद्धे / ततो महाविदेहे यथा दृढप्रतिज्ञो यावत् सेत्स्यति 5 / एवं खलु जम्बूः ! श्रमणेण भगवता महावीरेण यावत् संप्राप्तेन -सुखविपाकानां दशमस्य अध्ययनस्यायमर्थः प्रज्ञप्तः। इति ब्रवीमि। तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! सुखविपाकाः। // दशममध्ययनं समाप्तम् // पदार्थ-दसमस्स-दशम अध्ययन का। उक्खेवो-उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्ववत् जानना चाहिए। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। जंबू !-हे जम्बू ! तेणं कालेणं-उस काल में। तेणं समएणं-उस समय में। साएयं-साकेत।णाम-नामक / णगरं-नगर / होत्था-था। उत्तरकुरू-उत्तरकुरु नाम का। उज्जाणेउद्यान था, वहां। पासामिओ-पाशामृगं नामक। जक्खो-यक्ष-यक्ष का यक्षायतन था। मित्तणंदी-मित्रनन्दी। राया-राजा था। सिरीकंता-श्रीकान्ता नामक। देवी-देवी अर्थात् रानी थी। वरदत्ते-वरदत्त नामक। कुमारेकुमार था। वरसेणापामोक्खाणं-वरसेनाप्रमुख। पंचदेवीसयाणं रायवरकन्नगाणं-पाँच सौ श्रेष्ठ राजकुमारियों का। पाणिग्गहणं-पाणिग्रहण-विवाह हुआ। तित्थगरागमणं-तीर्थंकर महाराज का आगमन हुआ। सावगधम्म-श्रावक धर्म का अंगीकार करना। पुव्वभवो-पूर्वभव की पृच्छा की गई। सयदुवारेशतद्वार नामक / णगरे-नगर था। विमलवाहणे राया-विमलवाहन नामक राजा था। धम्मरुई-धर्मरुचि। अणगारे-अनगार को। पडिलाभिए-प्रतिलाभित किया गया, तथा। मणुस्साउए-मनुष्य आयु का। बद्धेबन्ध किया।इहं-यहां पर। उप्पन्ने-उत्पन्न हुआ। सेसं-शेष वर्णन / जहा-जैसे। सुबाहुस्स-सुबाहु / कुमारस्सकुमार का है, वैसे ही जानना चाहिए। चिन्ता-चिन्ता अर्थात् पौषध में भगवान् महावीर स्वामी के चरणों में दीक्षित होने का विचार। जाव-यावत्। पव्वजा-प्रव्रज्या-साधुवृत्ति का ग्रहण करना। कप्तरे-कल्पान्तर में-अन्यान्य देवलोक में उत्पन्न होगा। तओ-वहां से। जाव-यावत्। सव्वटुसिद्धे-सर्वार्थसिद्ध नामक विमान में उत्पन्न होगा। तओ-वहां से। महाविदेहे-महाविदेह क्षेत्र में जन्मेगा। जहा-जैसे। दढपइण्णेदृढ़प्रतिज्ञ। जाव-यावत्। सिज्झिहिइ ५-सिद्ध होगा, 5 / एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। जंबू !-हे जम्बू! समणेणं-श्रमण। भगवया-भगवान्। महावीरेणं-महावीर। जाव-यावत्। संपत्तेणं-मोक्षसंप्राप्त ने। सुहविवागाणं-सुखविपाक के। दसमस्स-दशम। अज्झयणस्स-अध्ययन का। अयमढे-यह अर्थ / पण्णत्ते-प्रतिपादन किया है। सेवं भंते ! भगवन् ! ऐसा ही है। सेवं भंते ! भगवन् ! ऐसा ही है। सुहविवागा-सुखविपाकविषयक कथन। दसमं-दशम। अज्झयणं-अध्ययन / समत्तं-सम्पूर्ण हुआ। त्ति बेमि-इस प्रकार मैं कहता हूँ। ___ मूलार्थ-जम्बू स्वामी ने निवेदन किया-भगवन् ! यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने यदि सुखविपाक के नवम अध्ययन का यह (पूर्वोक्त ) अर्थ वर्णन किया है तो भदन्त ! यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने सुखविपाक के दशम अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? सुधर्मा स्वामी ने फरमाया-जम्बू ! उस काल और उस समय में साकेत नाम का द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / दशम अध्याय [991