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________________ सुकालो जखो। अपडिहओ राया। सुकण्हा देवी। महचंदे कुमारे। तस्स अरहदत्ता भारिया। जिणदासो पुत्तो। तित्थगरागमणं। जिणदासपुव्वभवो। मज्झमिया णगरी। मेहरहे राया। सुधम्मे अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। निक्खेवो। ॥पंचमं अज्झयणं समत्तं॥ ____ छाया-पञ्चमस्योत्क्षेपः। सौगन्धिका नगरी। नीलाशोकमुद्यानम्। सुकालो यक्षः। अप्रतिहतो राजा। सुकृष्णा देवी। महाचन्द्रः कुमारः। तस्य अर्हदत्ता भार्या / जिनदासः पुत्रः। तीर्थंकरागमनम्। जिनदासपूर्वभवः। माध्यमिका नगरी। मेघरथो राजा। सुधर्मा अनगारः प्रतिलाभितो यावत् सिद्धः। निक्षेपः। . ॥पंचममध्ययनं समाप्तम् // पदार्थ-पंचमस्स-पंचम अध्ययन का। उक्खेवो-उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्व की भाँति जानना चाहिए। सोगन्धिया-सौगन्धिका नामक। णगरी-नगरी थी। णीलासोगे-नीलाशोक नामक। उज्जाणेउद्यान था। सुकाले-सुकाल नामक / जक्खे-यक्ष-यक्ष का स्थान था। अपडिहओ-अप्रतिहत। राया-राजा था। सुकण्हा-सुकृष्णा। देवी-देवी थी। महचंदे-महाचन्द्र। कुमारे-कुमार था। तस्स-उस की महाचन्द्र की। अरहदत्ता-अर्हदत्ता। भारिया-भार्या थी। जिणदासो-जिनदास। पुत्तो-पुत्र था। तित्थगरागमणंतीर्थंकर भगवान् का आगमन हुआ। जिणदासपुव्वभवो-जिनदास का पूर्वभव पूछना। मज्झिमियामाध्यमिका। णगरी-नगरी थी। मेहरहे-मेघरथ। राया-राजा था। सुधम्मे-सुधर्मा। अणगारे-अनगार। पडिलाभिए-प्रतिलाभित किए गए। जाव-यावत्। सिद्धे-सिद्ध हुआ। निक्खेवो-निक्षेप अर्थात् उपसंहार की कल्पना पूर्व की भांति कर लेनी चाहिए। पंचम-पांचवां / अज्झयणं-अध्ययन / समत्तं-सम्पूर्ण हुआ। . मूलार्थ-पञ्चम अध्ययन का उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्ववत् जानना चाहिए। जम्बू ! सौगन्धिका नाम की नगरी थी।वहां नीलाशोक नाम का एक उद्यान था, उस में सुकाल नामक यक्ष का यक्षायतन था। नगरी में महाराज अप्रतिहत राज्य किया करते थे, उन की रानी का नाम सुकृष्णा देवी था और पुत्र का नाम महाचन्द्र कुमार था। उस की अर्हदत्ता भार्या थी, इन का जिनदास नाम का एक पुत्र था। उस समय तीर्थंकर भगवान का आगमन हुआ-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे। जिनदास का भगवान से पंचाणुव्रतिक गृहस्थधर्म स्वीकार करना, गणधर देव श्री गौतम स्वामी द्वारा उस का पूर्वभव पूछना और श्रमण भगवान् महावीर स्वामी प्रतिपादन करने लगे गौतम ! माध्यमिका नाम की नगरी थी।महाराज मेघरथ वहां के राजा थे।सुधर्मा अनगार को महाराज मेघरथ ने आहार दिया, उस से मनुष्य आयु का बन्ध किया और द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / पञ्चम अध्याय [973
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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