________________ उत्पन्न होना, वहां से सुबाहुकुमार की भाँति अनेकानेक भव करते हुए वह अन्त में महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा, आदि भावों का परिचायक है। तथा 5 के अंक से अभिमत पद श्री सुबाहुकुमार नामक सुखविपाक के प्रथम अध्ययन में लिखे जा चुके हैं। पाठक वहीं देख सकते हैं। नामगत भेद के अतिरिक्त अर्थगत कोई अन्तर नहीं है। // तृतीय अध्ययन सम्पूर्ण॥ * द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [967