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________________ सुखविपाक के द्वितीय अध्ययन के अर्थ को सुनने के लिए उत्कंठित हो रहा है। आगे बढ़ने वाले को आगे ही बढ़ना पसन्द होता है। उसे उदासीन होना नहीं आता। उस की प्रकृति ही उसे प्रगति के लिए उत्साहित करती रहती है। श्री जम्बू मुनि भी इसी तरह प्रयत्नशील हुए और आर्य सुधर्मा स्वामी के चरणों में उपस्थित हो कर बोले-भदन्त ! आप श्री के अनुग्रह से मैंने सुखविपाक के प्रथम अध्ययन का अर्थ सुन लिया है और उस का यथाशक्ति चिन्तन तथा मनन भी कर लिया है। अब आप उसके दूसरे अध्ययन के अर्थ का श्रवण कराने की भी कृपा करें, मुझे उस का अर्थ सुनने की भी बहुत उत्सुकता हो रही है। इसी भाव को सूत्रकार ने-बिइयस्स उक्खेवो-इस संक्षिप्त वाक्य में गर्भित कर दिया है। -उक्खेव-उत्क्षेप प्रस्तावना का नाम है। प्रस्तुत सुखविपाकगत द्वितीय अध्ययन का प्रस्तावनारूप सूत्रांश निम्नोक्त है -जइणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, बिइयस्स णं भंते ! अज्झयणस्स सुहविवागाणं समजेणं भगवया महावीरेणंजाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते?-अर्थात्-यदि भदन्त ! यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के प्रथम अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ वर्णन किया है तो भदन्त ! यावत् मेक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने सुखविपाक के दूसरे अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? जम्बू स्वामी की उक्त प्रार्थना पर दूसरे अध्ययन के अर्थ का प्रतिपादन.करते हुए आर्य सुधर्मा स्वामी बोले कि हे जम्बू ! ऋषभपुर नाम का एक समृद्धिशाली नगर था। उस के ईशानकोण में स्तूपकरंडक नाम का एक रमणीय उद्यान था, उस में धन्य नाम के यक्ष का एक विशाल मन्दिर था। उस नगर के शासक-नृपति का नाम धनावह था। उस की सरस्वती देवी नाम की रानी थी। किसी समय शयनभवन में सुखशय्या पर सोई हुई महारानी सरस्वती ने स्वप्न में एक सिंह को देखा जो कि आकाश से उतर कर उस के मुख में प्रवेश कर गया। वह तुरन्त जागी और उसने अपने पति के पास आ कर अपने स्वप्न को कह सुनाया। स्वप्न को सुन कर महाराज धनावह ने कहा कि इस स्वप्न के फलस्वरूप तुम्हारे एक सुयोग्य पुत्र होगा। महारानी ने महाराज के मंगलवचन को बड़े सम्मान से सुना और नमस्कार कर के वह अपने शय्यास्थान पर जा कर अवशिष्ट रात्रि को कोई अनिष्टोत्पादक स्वप्न न आ जाए इस विचार से धर्मजागरण में ही व्यतीत करने लगी। समय आने पर महारानी ने एक रूप गुण सम्पन्न बालक को जन्म दिया। माता-पिता. ने उस का नाम भद्रनन्दी रखा। योग्य लालन-पालन से शुक्लपक्षीय शशिकला की भाँति वृद्धि 960 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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