SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 970
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ को प्राप्त करता हुआ वह शिशुभाव को त्याग युवावस्था को प्राप्त हुआ। इस के मध्य में उस ने सुयोग्य विद्वानों की देख-रेख के कारण उचित शिक्षा में निपुणता प्राप्त कर ली। यौवनप्राप्त श्री भद्रनन्दी के माता-पिता ने उस का एक साथ श्रीदेवी प्रमुख 500 राजकन्याओं के साथ विवाह कर दिया और सब को पृथक्-पृथक् दहेज दिया। तदनन्तर उन राजकन्याओं के साथ उन्नत प्रासादों में रह कर सांसारिक कामभोगों का यथेष्ट उपभोग करता हुआ भद्रनन्दी सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा। किसी समय ऋषभपुर नगर में चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी पधारे और शिष्य परिवार के साथ स्तूपकरंडक उद्यान में विराजमान हो गए। नगर की भावुक जनता उन के दर्शन और धर्मोपदेश श्रवण करने के लिए उद्यान में आई। भगवान् ने सब की उपस्थिति में धर्म का उपदेश दिया। उपदेश सुन कर जनता अपने-अपने स्थानों को वापिस लौट गई। सब के चले जाने के बाद वहां धर्मश्रवणार्थ आए हुए भद्रनन्दी ने भगवान् के सम्मुख उपस्थित हो कर सुबाहुकुमार की भाँति साधुवृत्ति के ग्रहण में असमर्थता प्रकट करते हुए उन से पञ्चाणुव्रतिक गृहस्थधर्म का ग्रहण किया। जब गृहस्थधर्म का नियम ग्रहण करके भद्रनन्दी अपने स्थान को चला गया, तब गौतम स्वामी ने सुबाहुकुमार की तरह भद्रनन्दी के रूप, लावण्य और गुणसम्पत्ति की प्रशंसा करते हुए उस के पूर्वभव के सम्बन्ध में भगवान् से पूछा कि भदन्त ! यह भद्रनन्दी पूर्वभव में कौन था तथा किस पुण्य के आचरण से इसने इस प्रकार की मानवीय गुणसमृद्धि प्राप्त की है ? इत्यादि। गौतम स्वामी के उक्त प्रश्न के उत्तर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने जो फरमाया, वह निम्नोक्त है गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में पुण्डरीकिणी नाम की एक सुप्रसिद्ध नगरी थी। वहां के शासक के पुत्र का नाम विजयकुमार था। विजयकुमार प्रतिभाशाली और त्यागशील साधु महात्माओं का बड़ा अनुरागी था। एक बार उस नगरी में युगबाहु नाम के तीर्थंकर महाराज पधारे। विजयकुमार ने बड़ी विशुद्ध भावना से उन्हें आहार दिया। आहार का दान करने से उस ने उसी समय मनुष्य की आयु का बन्ध किया। तथा वहां की भवस्थिति पूरी करने के बाद उस सुपात्रदान के प्रभाव से वह यहां आकर भद्रनन्दी के रूप में अवतरित हुआ। तब भद्रनन्दी को इस समय जो मानवीय ऋद्धि सम्प्राप्त हुई है, वह विशुद्ध भावों से किए गए उसी आहारदानरूप पुण्याचरण का विशिष्ट फल है। तदनन्तर गौतम स्वामी के-भदन्त ! क्या यह भद्रनन्दी मुनिधर्म में भी प्रवेश करेगा अर्थात् मुनिधर्म की दीक्षा लेगा कि नहीं -इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् बोले-हां गौतम ! लेगा। तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहां से अन्यत्र विहार कर गए। द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [961
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy