________________ नामक। कुमारे-कुमार था। जुगबाहू-युगबाहु। तित्थगरे-तीर्थंकर। पडिलाभिए-प्रतिलाभित किए। मणुस्साउए-मनुष्य आयु का। बद्धे-बन्ध किया। इहं-यहां। उववन्ने-उत्पन्न हुआ। सेसं-शेष। जहा जैसे। सुबाहुस्स-सुबाहुकुमार का वर्णन है। जाव-यावत्। महाविदेहे-महाविदेह क्षेत्र में। सिज्झिहिइ* सिद्ध होगा। बुझिहिइ-बुद्ध होगा। मुच्चिहिइ-कर्मबन्धनों से मुक्त होगा। परिनिव्वाहिइ-निर्वाण पद को प्राप्त होगा। सव्वदुक्खाणमन्तं-सर्व दुःखों का अन्त। करेहिइ-करेगा। निक्खेवो-निक्षेप की कल्पना पूर्व की भांति कर लेनी चाहिए। बिइअं-द्वितीय। अज्झयणं-अध्ययन / समत्तं-समाप्त हुआ। " मूलार्थ-द्वितीय अध्ययन के उत्क्षेप-प्रस्तावना की कल्पना पूर्व की भाँति कर लेनी चाहिए। जम्बू ! उस काल तथा उस समय ऋषभपुर नामक नगर था, वहां पर स्तूपकरंडक नामक उद्यान था, वहां धन्य नाम के यक्ष का यक्षायतन था। वहां धनावह नाम का राजा राज्य किया करता था, उस की सरस्वती देवी नाम की रानी थी। महारानी का स्वप्न देखना और पति से कहना, समय आने पर बालक का जन्म होना, और बालक का बाल्यावस्था में कलाएं सीख कर यौवन को प्राप्त करना, तदनन्तर विवाह का होना, माता-पिता द्वारा दहेज का देना, तथा राजभवन में यथारुचि भोगों का उपभोग करना आदि सब कुछ सुबाहुकुमार की भाँति जानना चाहिए। इस में इतना अन्तर अवश्य है कि बालक का नाम भद्रनन्दी था। उसका श्रीदेवीप्रमुख 500 श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ।.महावीर स्वामी का पधारना, भद्रनन्दी का श्रावकधर्म ग्रहण करना, गौतम स्वामी का पूर्वभवसम्बन्धी प्रश्न करना, तथा भगवान् का कथन करना महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत पुण्डरीकिणी नाम की नगरी में विजय नामक कुमार था, उस का युगबाहु तीर्थंकर को प्रतिलाभित करना, उस से मनुष्य आयु का बन्ध करना और यहां पर भद्रनन्दी के रूप में उत्पन्न होना। शेष वर्णन सुबाहुकुमार के सदृश ही जान लेना चाहिए। यावत् महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर चारित्र पाल कर सिद्ध होगा, बुद्ध होगा, मुक्त होगा, निर्वाण पद को प्राप्त होगा और सर्व प्रकार के दुःखों का अन्त करेगा। निक्षेप की कल्पना पूर्व की भाँति कर लेनी चाहिए। ॥द्वितीय अध्ययन सम्पूर्ण॥ टीका-राजगृह नगरी के गुणशिलक नामक उद्यान में आर्य सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य परिवार के साथ पधारे हुए हैं। उन के प्रधान शिष्य का नाम जम्बू अनगार था। जम्बू मुनि जी घोर तपस्वी, परममेधावी, परम संयमी, विनीत, साधुओं में विशिष्ट प्रतिभा के धनी और परमविवेकी मुनिराज थे। आप प्रायः आर्य सुधर्मा स्वामी के चरणों में अधिक निवास किया करते थे। आप का अधिक समय शास्त्रस्वाध्याय में ही व्यतीत हुआ करता था। अभी आप सुखविपाक के सुबाहु नामक प्रथम अध्ययन का मनन करके उठे हैं। अब आप का मन द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [959