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________________ शास्त्र रचे हैं वे उपांग कहलाते हैं। उपांग 12 हैं। उन का नामपूर्वक संक्षिप्त परिचय निम्नोक्त .. ' १-औपपातिकसूत्र-यह पहले अङ्ग आचाराङ्ग का उपांग माना जाता है। इस में चंपा नगरी, पूर्णभद्र यक्ष, पूर्णभद्र चैत्य, अशोकवृक्ष, पृथ्वीशिला, कोणिक राजा, राणी धारिणी, भगवान् महावीर तथा भगवान् के साधुओं का वर्णन करने के साथ-साथ तप का, गौतमस्वामी के गुणों, संशयों, प्रश्नों तथा सिद्धों के विषय में किये प्रश्नोत्तरों का वर्णन किया गया है। २-राजप्रश्नीय-यह सूत्रकृतांग का उपाङ्ग है। सूत्रकृतांग में क्रियावादी, अक्रियावादी आदि 363 मतों का वर्णन है। राजा प्रदेशी अक्रियावादी था, इसी कारण उसने श्री केशी श्रमण से जीवविषयक प्रश्न किये थे। अक्रियावाद का वर्णन सूत्रकृतांग में है। उसी का दृष्टान्तों द्वारा विशेष वर्णन राजप्रश्नीय सूत्र में है। ३-जीवाजीवाभिगम-यह तीसरे अंग स्थानांग का उपांग है। इस में जीवों के 24 स्थान, अवगाहना, आयुष्य, अल्पबहुत्व, मुख्यरूप से अढ़ाई द्वीप तथा सामान्यरूप से सभी द्वीप समुद्रों का वर्णन है। स्थानांगसूत्र में संक्षेप से कही गई बहुत सी वस्तुएं इस में विस्तारपूर्वक बताई गई हैं। ४-प्रज्ञापना-यह समवायांगसूत्र का उपांग है। समवायांग में जीव, अजीव, स्वसमय, परसमय, लोक, अलोक आदि विषयों का वर्णन किया गया है। एक-एक पदार्थ की वृद्धि करते हुए सौ पदार्थों तक का वर्णन समवायांगसूत्र में है। इन्हीं विषयों का वर्णन विशेषरूप से प्रज्ञापना सूत्र में किया गया है। इस में 36 पद हैं। एक-एक पद में एक-एक विषय का वर्णन ५-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-इस में जम्बूद्वीप के अन्दर रहे हुए भरत आदि क्षेत्र, वैताढ्य आदि पर्वत, पद्म आदि द्रह, गंगा आदि नदियां, ऋषभ आदि कूट तथा ऋषभदेव और भरत चक्रवर्ती का वर्णन विस्तार से किया गया है। ज्योतिषी देव तथा उन के सुख आदि भी बताए गए हैं। इस में दस अधिकार हैं। ६-चन्द्रप्रज्ञप्ति-चन्द्र की ऋद्धि, मंडल, गति, गमन, संवत्सर, वर्ष, पक्ष, महीने, तिथि, नक्षत्र का कालमान, कुल और उपकुल के नक्षत्र, ज्योतिषियों के सुख आदि का वर्णन इस सूत्र में बड़े विस्तार से है। इस सूत्र का विषय गणितानुयोग है। बहुत गहन होने के कारण यह सरलतापूर्वक समझना कठिन है। ७-सूर्यप्रज्ञप्ति-यह उत्कालिक उपांग सूत्र है। इस में सूर्य की गति, स्वरूप, प्रकाश, . आदि विषयों का वर्णन है। इस में 20 प्राभृत हैं। 944 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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