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________________ विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। - २-सूत्रकृतांग-इस में जीव, अजीव आदि पदार्थों का बोध कराया गया है। इस के अतिरिक्त 363 एकान्त क्रियावादी आदि के मतों का उपपादन और निराकरण करके जैनेन्द्र प्रवचन को प्रामाणिक सिद्ध किया गया है। वर्णन बड़ा ही हृदयहारी है। ३-स्थानांग-इस में जीव, अजीव आदि पदार्थों का तथा अनेकानेक जीवनोपयोगी उपदेशों का विशद वर्णन मिलता है और यह दश भागों में विभक्त किया गया है। यहां विभाग शब्द के स्थान पर "स्थान" शब्द का व्यवहार मिलता है। __४-समवायांग-इस सूत्र में भी जीव, अजीव आदि पदार्थों का स्वरूप संख्यात और असंख्यात विभागपूर्वक वर्णित है। ५-भगवती-इस सूत्र को विवाहपण्णत्ति-व्याख्याप्रज्ञप्ति भी कहते हैं। इस में जीव, अजीव, लोक, अलोक, स्वसिद्धान्त, परसिद्धान्त आदि विषयों से सम्बन्ध रखने वाले 36 हजार प्रश्न और उनके उत्तर वर्णित हैं। ६-ज्ञाताधर्मकथांग-इस में अनेक प्रकार की बोधप्रद धार्मिक कथाएं संगृहीत की गई हैं। ७-उपासकदशांग-इस में श्री आनन्द आदि दश श्रावकों के धार्मिक जीवन का वर्णन करते हुए श्रावकधर्म का स्वरूप प्रतिपादित किया गया है। ८-अन्तकृदशांग-इस में गजसुकुमाल आदि महान् जितेन्द्रिय महापुरुषों के तथा पद्मावती आदि महासतियों के मोक्ष जाने तक की साधना का वर्णन किया गया है। ९-अनुत्तरोपपातिकदशांग-इस में जाली आदि महातपस्वियों के एवं धन्ना आदि महापुरुषों के विजय, वैजयन्त आदि अनुत्तर विमानों में जन्म लेने आदि का वर्णन किया गया १०-प्रश्नव्याकरण-इस में अंगुष्टादि प्रश्नविद्या का निरूपण तथा पांच आश्रवों और पांच संवरों के स्वरूप का दिग्दर्शन कराया गया था, परन्तु समयगति की विचित्रता के कारण वर्तमान में मात्र पांच आश्रवों और पांच संवरों का ही वर्णन उपलब्ध होता है। अंगुष्टादि प्रश्रविद्या का वर्णन वर्तमान में अनुपलब्ध है। ११-विपाकश्रुत-इस में मृगापुत्र आदि के पूर्वसंचित अशुभ कर्मों का अशुभ परिणाम तथा सुबाहुकुमार आदि के पूर्वसंचित शुभ कर्मों के शुभ विपाक का वर्णन किया गया है। ___ कालदोषकृत बुद्धिबल और आयु की कमी को देख कर सर्वसाधारण के हित के लिए अंगों में से भिन्न-भिन्न विषयों पर गणधरों के पश्चाद्वर्ती श्रुतकेवली या पूर्वधर आचार्यों ने जो द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [943
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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