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________________ प्रष्ठ विषय विषय कुमार को कामध्वजा वेश्या के घर से पापपुंज को एकत्रित किया था, परिणामनिकाल कर राजा का वेश्या को अपने स्वरूप यह तीसरी नरक में उत्पन्न हुआ महलों में रखना। इस के अतिरिक्त था। 357 उज्झितककुमार का कामध्वजा के प्रति नरक से निकल कर अण्डवाणिज के आसक्त होना। ___303/ जीव का विजयसेन चोरसेनापति की स्त्री 47. उज्झितककुमार का अवसर पाकर | स्कन्धश्री के गर्भ में आना और इसकी कामध्वजा के साथ विषयोपभोग करना। 309/ माता को एक दोहद का उत्पन्न होना। 364 48. राजा द्वारा कामभोग का सेवन करते हुए 56. स्कन्दश्री के दोहद का उत्पन्न होना और उज्झितक कुमार को देखना और अत्यन्त | एक बालक को जन्म देना। 371 क्रुद्ध हो कर उसे मरवा देना। 310/57. बालक का अभग्नसेन ऐसा नाम रखा .. 49. गौतम स्वामी का उज्झितक कुमार के | जाना। अग्रिम भवों के सम्बन्ध में पूछना तथा 58. अभग्नसेन का आठ लड़कियों के साथ - भगवान महावीर का उत्तर देना। 315 / विवाह का होना। 381 अथ तृतीय अध्याय 59. विजयसेन चोरसेनापति की मृत्यु और 50. तृतीय अध्याय की उत्थानिका और | उस के स्थान पर अभग्नसेन की नियुक्ति। 384 शालाटवी नामक चोरपल्ली तथा उस में 160. अभग्नसेन द्वारा बहुत से ग्राम नगरादि / रहने वाले चोरसेनापति विजय का वर्णन। 332 का लूटा जाना तथा पुरिमताल नगर51. विजय चोरसेनापति की दुष्प्रवृत्तियों का निवासियों का अभग्नसेनकृत उपद्रवों को विवेचन तथा उस की स्कन्धश्री. नामक शान्तं करने के लिए महाबल राजा से भार्या के अभग्नसेन नामक बालक का विनति करने के लिए उपस्थित होना। 387 निरूपण। __340 / 61. नागरिकों का राजा से विज्ञप्ति करना। 391 52. पुरिमताल नगर के मध्य में श्री गौतम 62. विज्ञप्ति सुन कर महाबल राजा का स्वामी का एक वध्य पुरुष को देखना अभग्नसेन के प्रति क्रुद्ध होना और उसे जिस के सामने उस के सम्बन्धियों पर जीते जी पकड़ लाने के लिए दण्डनायक अत्यधिक मारपीट की जा रही थी। 347 | को आदेश देना। 393 53. उस पुरुष की दयनीय अवस्था को देख 63. दण्डनायक का चोरपल्ली की ओर कर गौतम स्वामी को तत्कृत कर्मों के प्रस्थान करना। ___396 सम्बन्ध में विचार उत्पन्न होना तथा उस 64. 500 चोरों सहित अभग्नसेन का सन्नद्ध के पूर्वभव के सम्बन्ध में भगवान महावीर | हो कर दंडनायक की प्रतीक्षा करना। 398 से पूछना। 354 | 65. दोनों ओर से युद्ध का होना, दंडनायक 54. भगवान का पूर्वभव वर्णन करते हुए यह | का हारना और महाबल राजा का साम फरमाना कि इस जीव ने पूर्वभव मे निर्णय , दाम आदि उपायों को काम में लाना। 403 नामक अण्डवाणिज के रूप में नाना 66. महाबल राजा द्वारा एक महती कूटाकारप्रकार के अण्डों के जघन्य व्यापार से / शाला का बनवाना, दशरात्रि नामक उत्सव 86 ] श्री विपाक सूत्रम् [विषयानुक्रमणिका
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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