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________________ है। आप इस विषय में सर्वथा निश्चिन्त रहें। आप का यह वीर बालक आप की शुभकीर्ति में किसी प्रकार का लांछन नहीं लगने देगा। अतः मुझे दीक्षाग्रहण करने की आज्ञा प्रदान करो। माता के चुप रहने पर वह फिर बोला वीर माता अपने पुत्र को रणक्षेत्र में जाने के लिए स्वयं सजा कर भेजती है, परन्तु आज न जाने उसे क्या हो गया ? मां ! मैं तो कर्मरूपी शत्रुओं के महान् दल को विध्वंस करने जा रहा हूँ, मुझे उस के लिए स्वयं तैयार करो। योग्य माताओं के आदर्श को अपना कर अपने इस वीर बालक को संयमयात्रा की आज्ञा प्रदान करो। अब तो सौभाग्यवश मुझे श्रमण भगवान् महावीर जैसे सेनानायक का संयोग प्राप्त हो रहा है। मैं उन के शासन में अवश्य विजय प्राप्त करूंगा। ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है। इसलिए मां ! उठो तुम स्वयं चल कर मुझे भगवान् के चरणों में जाकर उन्हें अर्पण कर दो और अन्ततोगत्वा यही समझ लेना कि मेरा वीर पुत्र अपनी आन को बचाने की खातिर रणक्षेत्र में कूद पड़ा है। मेघकुमार के पिता महाराज श्रेणिक बड़े नीतिज्ञ थे। उन्होंने सोचा कि कभी-कभी अनेक युवक भावुकता के प्रवाह में बहते हुए अंतरंग में स्थायी और दृढ़ संकल्पों के अभाव में भी स्थायी प्रभाव रखने वाले कार्यों में जुट जाते हैं। उस का फल यह होता है कि तीर तो हाथ से छूट जाता है मात्र पश्चात्ताप पल्ले रह जाता है। यद्यपि मेघकुमार बुद्धिमान् और सुशील है तथापि युवक ही तो है। अस्तु, इस की दृढ़ता की प्रथम जांच करनी चाहिए। यह सोच कर महाराज श्रेणिक मेघकुमार को सम्बोधित करते हुए बोले.. पुत्र ! तू वीर है, संसार में वीरता का आदर्श उपस्थित कर तू संयमी-साधु बन कर दुनिया को कायरता का सन्देश क्यों देता है ? संसार का जितना कल्याण तलवार से हो सकता है, उतना साधुवृत्ति से नहीं होगा। अपने ऊपर आये हुए गृहस्थी के भार से भयभीत हो कर भागना कायरों का काम है, तेरे जैसे वीरात्मा का नहीं। लोग तुझे क्या समझेंगे? तेरी शक्ति का संसार को क्या लाभ हुआ? यदि तू संसार का कल्याण चाहता है तो अपने हाथ में शासन की बागडोर ले और प्रजा का नीतिपूर्वक पालन कर। ऐसा करने से तेरा और जगत् दोनों का हित सम्पन्न होगा। .. पिता की यह बात सुन कर मेघकुमार बोला-पिता जी ! यह आप ने क्या कहा ? क्या संयम धारण करना कायरों का काम है ? नहीं नहीं। उस के धारणं के लिए तो बड़ी शूरवीरता की आवश्यकता होती है। तलवार चलाने में वह वीरता नहीं जो संयम के ग्रहण करने में है। तलवार के बल से जनता के मन को भयभीत किया जा सकता है, उसे व्यथित एवं संत्रस्त किया जा सकता है, परन्तु अपनाया या उठाया नहीं जा सकता। तलवार से वश होने वाले, द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [929
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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