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________________ से जीवननिर्वाह करना होता है। इस विषय में तो इतनी अधिक कठिनाई है कि जो तेरे जैसे राजसी ठाठ में पले हुए सुकुमार युवक की कल्पना में भी नहीं आ सकती। नीरस भोजन, पृथ्वी पर सोना, दंशमशकादि का काटना और शीतातप का लगना आदि ऐसे अनेक कष्ट झेलने पड़ते हैं कि जिन को तेरे जैसे राजकुमार को कभी कल्पना भी नहीं हो सकती। ऐसे विकट मार्ग में गमन करने से पहले अपने आत्मबल को भी देख लेना चाहिए। कहीं इस नवीन वैराग्य की बाढ़ में तरने के बदले अपने आप को खो देने की भूल न कर बैठना। तू अभी बच्चा है। तेरा अनुभव इतना विशद नहीं। प्रत्येक कार्य में उस के आरम्भ से पहले उस से निष्पन्न होने वाले हानि-लाभ का विचार करना नितान्त आवश्यक होता है। इसलिए पुत्र ! मेरी तो इस समय तेरे लिए यही सम्मति है कि तू अभी दीक्षा के विचार को स्थगित कर दे। माता-पिता के इस उपदेश का भी मेघकुमार के हृदय पर कुछ असर नहीं हुआ, प्रत्युत कठिनाई की बातों को सुन कर वह बोला, माता जी ! संयम महान् कठिन है, यह मैं जानता . हूं और यह भी जानता हूँ कि इस के धारक वीर पुरुष ही हो सकते हैं। यह काम कायरों और कमजोरों का नहीं, वे तो आरम्भ में ही फिसल जाते हैं। परन्तु मैं तो एक वीर क्षत्रियाणी का वीरपुत्र हूं और क्षात्रधर्म का जीता-जागता प्रतीक हूँ। वीरांगना के आत्मजों में दुर्बलता की शंका करना भ्रम मात्र है। मां ! एक सिंहनी अपने पुत्र को रणसंग्राम से पीछे हटने का उपदेश दे, यह देख मुझे तो आश्चर्य होता है। एक क्षत्रिय कुमार होता हुआ मैं संयम की कठिनता से भयभीत हो जाऊं, यह तो आप को स्वप्न में भी ख्याल नहीं करना चाहिए। "तेजस्विनः क्षणमसूनपि संत्यजन्ति। सत्यव्रतप्रणयिनो न पुनः प्रतिज्ञाम्" अर्थात् तेजस्वी, धीर और वीर पुरुष अपने प्राणों का त्याग कर देते हैं, परन्तु ग्रहण की हुई प्रतिज्ञा को भंग नहीं होने देते। भला मां ! यह तो बतलाओ कि संसार में कोई ऐसा काम भी है जिस में किसी न किसी प्रकार का कष्ट न उठाना पड़े? माता बच्चे को जन्म देते समय कितनी व्यापक वेदना का अनुभव करती है ? यदि वह उस असह्य वेदना को सह लेती है तभी तो अपनी गोद को बच्चे से भरी हुई पाती है और "-मां ! मां !-" इस मधुर ध्वनि से अपने कर्णविवरों को पूरित करने का हर्षपूर्ण पुण्य अवसर प्राप्त करती है। माता जी ! मुझे संयम की कठिनाइयों से भयभीत करके संयम से पराङ्मुख करने का प्रयास मत करो। मैं तो "कार्यं वा साधयामि देहं वा पातयामि"-इस प्रतिज्ञा का पालन करने वाला हूँ। इसलिए मुझे संयम में उपस्थित होने वाली कठिनाइयों से अणुमात्र भी भय नहीं 1. कार्य को सिद्ध कर लूंगा या उस की सिद्धि में जीवन को अर्पण कर दूंगा, अर्थात् कार्यसिद्धि के लिए / इतनी दृढ़ता है तो उसके लिए मृत्युदेवी का सहर्ष आलिंगन कर लूंगा। 928 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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