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________________ . भगवान् का आगमन सुनते ही वह पहले की तरह, जिस तरह प्रस्तुत अध्ययन में वर्णन किया गया है, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के चरणों में उपस्थित हो जाता है और विधिपूर्वक वन्दना नमस्कार करने के अनन्तर भगवान् की पर्युपासना में यथास्थान बैठ जाता है। सब के यथास्थान बैठ जाने पर उन की धर्मामृतपान करने की बढ़ी हुई अभिलाषा को देख कर भगवान् बोले भव्यपुरुषो! जिस प्रकार नगरप्राप्ति के लिए उस के मार्ग को जानना और उस पर चलने की आवश्यकता है, उसी प्रकार मोक्षमन्दिर तक पहुंचने की इच्छा रखने वाले साधकों को भी उस के मार्ग का बोध प्राप्त करके उस पर चलने की आवश्यकता होती है। किसी प्रकार की लालसा का न होना मोक्ष का मार्ग है। जब तक लालसाएं बनी हुई हैं। तब तक मोक्ष की इच्छा करना, वायु को मुट्ठी में रोकने की चेष्टा करना है। इसलिए सर्वप्रथम सांसारिक लालसाओं से पिंड छुड़ाना चाहिए। लालसाओं से पीछा छुड़ाने के लिए सब से प्रथम महापिशाचिनी हिंसा को त्यागना होगा। बिना हिंसा के त्याग किये लालसाएं विनष्ट नहीं हो सकतीं। हिंसात्याग के लिए पहले असत्य को त्यागना होगा। जहां झूठ है वहां हिंसा है। जहां हिंसा है वहां लालसा है। लालसा मिटाने के लिए हिंसा के साथ झूठ का भी परित्याग करना पड़ता है। इसी प्रकार झूठ के त्यागार्थ चोरी का त्याग करना आवश्यक है। चोरी करने वाला झूठ, हिंसा और लालसा का ही उपासक होता है। इसलिए झूठ के साथ स्तेयकर्म का भी परित्याग कर देना चाहिए और चोरी के त्याग के निमित्त ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी है। बिना ब्रह्मचर्य पालन किये, बिना इन्द्रियों को वश में किए, न तो चोरी छूट सकती है और न असत्य-झूठ, और न ही हिंसा। इसलिए हिंसा से लेकर झूठपर्यन्त सभी दुर्गुणों के त्यागार्थ मैथुन का त्याग और ब्रह्मचर्य का पालन नितान्त आवश्यक है। जैसे हिंसादि के त्यागार्थ ब्रह्मचर्य का पालन अर्थात् इन्द्रियों का निग्रह करना आवश्यक है, उसी प्रकार ब्रह्मचर्य के लिए परिग्रह का त्याग करना होगा। सब प्रकार के पापों का मूलस्रोत परिग्रह ही है। दूसरे शब्दों में इस आत्मा को जन्म-मरण रूप संसार में फिराने और भटकाने वाला परिग्रह ही है। इसी से सर्वप्रकार के पापाचरणों में यह जीव प्रवृत्त होता है। इसलिए परिग्रह का परित्याग करो। उस के त्यागने से लालसा का अपने आप त्याग हो जाएगा। मूर्छा या ममत्व का नाम परिग्रह है। संसार की जिस वस्तु पर आत्मा का ममत्व है, आत्मा के लिए वही परिग्रह है। अतः मोक्षरूप आनन्दनगर में प्रवेश करने के लिए परिग्रह का परित्याग परम आवश्यक है। जो भव्यात्मा परिग्रह का जितने अंश में त्याग करेगा, उस की लालसाएं उतने ही अंश में कम होती जाएंगी और जितनी-जितनी लालसाएं कम होंगी उतना-उतना यह आत्मा मोक्षमन्दिर के समीप आता द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [921
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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