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________________ पधारें ! उत्तर-सुबाहुकुमार न तो स्वयं गया और न उस ने कोई प्रार्थनापत्र भेजा, इसके अंदर भी कई कारण हैं। भला, एक परम श्रद्धालु व्यक्ति कोई ऐसा कृत्य कर सकता है जो सत्य से शून्य हो तथा निरर्थक हो ? सुबाहुकुमार समझता है कि यदि मेरी इस भावना पर भगवान् पधार जाएं तो मैं समझ लूंगा कि मैं दीक्षित होने के योग्य हूँ और यदि मेरे में दीक्षाग्रहण करने की योग्यता नहीं होगी तो मेरी इस भावना पर भी भगवान् नहीं पधारेंगे। कारण कि भगवान् सर्वज्ञ और सर्वान्तर्यामी हैं, वे जो कुछ भी करेंगे वह मेरे लाभ के लिए होगा। दूसरे शब्दों में भगवान् महावीर स्वामी के पधारने का अर्थ यह होगा कि मेरा मनोरथ सफल है, भवितव्यता मेरा साथ दे रही है और यदि भगवान न पधारे तो उस का यह अर्थ होगा कि अभी मैं दीक्षा के अयोग्य हूँ। सुबाहुकुमार के ये विचार महान् विनय के संसूचक हैं। सुबाहुकुमार यदि अपने नगर को छोड़ कर अन्यत्र जा कर दीक्षा लेता तो उस का वह प्रभाव नहीं हो सकता था, जो कि वहां अर्थात् अपने नगर में हो सकता है। एक राजकुमार का दीक्षा लेने की अभिलाषा से अन्यत्र जाने की अपेक्षा अपनी राजधानी में दीक्षित होना अधिक प्राभाविक है। राजकुमार के दीक्षित होने पर हस्तिशीर्ष की प्रजा पर जो प्रभाव हो सकता है वह अन्यत्र होना संभव नहीं है। इसीलिए सुबाहुकुमार भगवान् के पास नहीं गया। निवेदनपत्र के विषय में यह बात है कि सुबाहुकुमार को यह मालूम है कि भगवान् सर्वज्ञ हैं, सर्वदर्शी हैं। तब सर्वज्ञ से जो प्रार्थना करनी है वह आत्मा के द्वारा सुगमता से की जा सकती है और उसी के द्वारा ही करनी चाहिए। सर्वज्ञ के पास निवेदनपत्र भेजना, सर्वज्ञता का अपमान करना है और अपनी मूर्खता अभिव्यक्त करनी है। निवेदनपत्र तो छद्मस्थों के पास भेजे जाते हैं, न कि सर्वज्ञ के पास / बस इन्हीं कारणों से सुबाहुकुमार न तो भगवान् के पास गया और न उन के पास किसी के हाथ प्रार्थनापत्र भेजने को ही उसने उचित समझा। ___-धम्मजागरियं-धर्मचिन्तन के लिए किये जाने वाले जागरण को धर्मजागरिका कहते हैं, तथा इस पद से सूत्रकार ने यह भी सूचित किया है कि जो काल भोगियों के सोने का होता है वह योगियों के आध्यात्मिक चिन्तन का होता है। 1. सुत्ता अमुणी सया, मुणिणो सया जागरन्ति। (आचारांग सूत्र, अ० 3, उद्दे० 1) अर्थात्-सोना और जागना द्रव्य एवं भावरूप से दो तरह का होता है। हम प्रतिदिन रात में सोते हैं और दिन में जागते हैं. यह तो द्रव्यरूप से सोना और जागना है. परन्त पाप में ही प्रवत्ति करते रहना भाव सोना है 3 धार्मिक प्रवृत्ति करते रहना भाव जागना है। इस प्रकार जो अमुनि हैं-पापिष्ट हैं, दुष्ट वृत्ति वाले हैं, वे तो सदैव सोए हुए ही हैं और जो मुनि हैं, सात्त्विक वृत्ति वाले हैं वे सदैव जागते रहते हैं। यही मुनि और अमुनि में अन्तर है, विशिष्टता है। 914 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय . [द्वितीय श्रुतस्कन्ध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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