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________________ . -अज्झथिए 5- यहां पर उल्लेख किये गए 5 के अंक से-चिंतिए, कप्पिए, पत्थिए मणोगए संकप्पे-इन अवशिष्ट पदों का ग्रहण करना चाहिए। स्थूलरूप से इन का अर्थ समान ही है और सूक्ष्म दृष्टि से इन का जो अर्थविभेद है वह इसी ग्रन्थ में पीछे लिखा जा चुका है। -गामागर० जाव सन्निवेसा-यहां पठित जाव-यावत् पद से-नगरकव्वडमडंबखेडदोणमुहपट्टणनिगमआसमसंवाहसंनिवेसा-इन पदों का ग्रहण समझना चाहिए। ग्राम आदि पदों का अर्थ निम्नोक्त है ___ ग्राम-गांव को अथवा बाड़ से वेष्टित प्रदेश को कहते हैं। सुवर्ण एवं रत्नादि के उत्पत्तिस्थान को आकर कहा जाता है। नगर शहर का अथवा कर-महसूल से रहित स्थान का नाम नगर है। खेट शब्द धूली के प्राकार से वेष्टित स्थान-इस अर्थ का परिचायक है। अढ़ाई कोस तक जिस के बीच में कोई ग्राम न हो-इस अर्थ का बोधक मडम्ब शब्द है। जल तथा स्थल के मार्ग से युक्त नगर द्रोणमुख कहलाता है। जहां सब वस्तुओं की प्राप्ति की जाती हो उस नगर को पत्तन कहते हैं। वह जलपत्तन-जहां नौकाओं द्वारा जाया जाता है तथा स्थलपत्तन-जहां गाड़ी आदि द्वारा जाया जाता है, इन भेदों से दो प्रकार का होता है। अथवा जहां गाड़ी आदि द्वारा जाया जाए वह पत्तन और जहां नौका आदि द्वारा जाया जाता है वह पट्टन कहलाता है। जहां अनेकों व्यापारी रहते हैं वह नगर निगम, जहां प्रधानतया तपस्वी लोग निवास करते हैं वह स्थान आश्रम कहा जाता है। किसानों के द्वारा धान्य की रक्षा के लिए बनाया गया स्थलविशेष अथवा पर्वत की चोटी पर रहा हुआ जनाधिष्ठित स्थलविशेष अथवा जहां इधर उधर से यात्री लोग निवास एवं विश्राम करें उस स्थान को संवाह कहते हैं। सन्निवेश छोटे गांव का नाम है अथवा अहीरों के निवासस्थान का, अथवा प्रधानतः सार्थवाह . 'आदि के निवासस्थान का नाम संनिवेश है। -राईसर०-यहां दिए गए बिन्दु से-तलवरमाडंबियकोडुबियसेडिसेणावइसत्थवाहपभियओ-इस पाठ का ग्रहण समझना चाहिए। राजा प्रजापति का नाम है। सेना के नायक को सेनापति कहते हैं / अवशिष्ट ईश्वर आदि पदों का अर्थ पीछे यथास्थान लिखा जा चुका -मुंडा जाव पव्वयंति-यहां पठित जाव-यावत् पद से-भवित्ता अगाराओ अणगारियं-(अर्थात्-दीक्षित हो कर अनगारभाव को धारण करतें हैं)-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। तथा-"पंचाणुव्वइयं जाव गिहिधम्म"-इस में उल्लिखित जाव-यावत् पद से-सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं-इस अवशिष्ट पाठ का ग्रहण जानना चाहिए। इस का द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [915
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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