________________ की जा सकती है। यदि उक्त स्थान को पहले न देखा जाए तो काम कैसे चलेगा ? बाधा को रोकने से शरीर अस्वस्थ हो जाएगा, शरीर के अस्वस्थ होने पर धार्मिक अनुष्ठान में प्रतिबन्ध . उपस्थित होगा... इत्यादि सभी बातों को ध्यान में रखते हुए सूत्रकार ने उच्चारप्रस्रवणभूमि के निरीक्षण का निर्देश किया है। इस से इस की धार्मिक पोषकता सुस्पष्ट है। -संथार-संस्तार, इस शब्द का प्रयोग आसन के लिए किया गया है। दर्भ कुशा का नाम है, कुशा का आसन दर्भसंस्तार कहलाता है। अष्टमभक्त यह जैनसंसार का पारिभाषिक शब्द है। जब इकट्ठे तीन उपवासों का प्रत्याख्यान किया जाए तो वहां अष्टमभक्त का प्रयोग किया जाता है। अथवा अष्टम शब्द आठ का संसूचक है और भक्त भोजन को कहते हैं। तात्पर्य यह है कि जिस तप में आठ भोजन छोड़े जाएं उसे अष्टमभक्त कहा जाता है। एक दिन में भोजन दो बार किया जाता है। प्रथम दिन सायंकाल का एक भोजन छोड़ना अर्थात् एकाशन करना और तीन दिन लगातार छ: भोजन छोड़ने, तत्पश्चात् पांचवें दिन प्रातः का भोजन छोड़ना, इस भाँति आठ भोजनों को छोड़ना अष्टमभक्त कहलाता है। इस प्रकार प्रस्तुत सूत्र में सूत्रकार ने सुबाहुकुमार के धार्मिक ज्ञान और धर्माचरण का वर्णन करते हुए उसे एक सुयोग्य धार्मिक राजकुमार के रूप में चित्रित किया है। अब उस के अग्रिम जीवन का वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं. मूल-तए णं तस्स सुबाहुस्स कुमारस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमे एयारूवे अझस्थिए 4 समुप्पज्जित्था-धन्ना णं ते गामागर जाव सन्निवेसा, जत्थ णं समणे भगवं महावीरे विहरइ, धन्ना णं ते राईसर० जे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडा जाव पव्वयन्ति।धन्ना णं ते राईसर० जे णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं जाव गिहिधम्म पडिवजन्ति। धन्ना णं ते राईसर जे णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सुणेति। तं जइ णं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं जाव दूइज्जमाणे इहमागच्छेजा जाव विहरिजा, तए णं अहं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पव्वएज्जा। छाया-ततस्तस्य सुबाहोः कुमारस्य पूर्वरात्रापररात्रकाले धर्मजागर्यया जाग्रतोऽयमेतद्प आध्यात्मिकः 4 समुत्पद्यत-धन्यास्ते' ग्रामाकर० यावत् सन्निवेशा 1. जहां महापुरुषों के चरणों का न्यास होता है वह भूमि भी पावन हो जाती है, यह बात बौद्धसाहित्य में भी मिलती है। देखिएद्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [911