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________________ -तहेव सीहं पासति-यहां पठित तथैव यह पद "-वैसे ही अर्थात् प्रस्तुत अध्ययन के आरम्भ में माता धारिणी ने स्वप्न में मुख में प्रवेश करते हुए सिंह को देखा था, उसी भांति यहां भी समझ लेना चाहिए-" इस अर्थ का परिचायक है। तथा बालक का जन्म, उसका सुबाहुकुमार नाम रखना, पांच धायमाताओं के द्वारा सुबाहुकुमार का पालनपोषण, विद्या का अध्ययन, युवक सुबाहुकुमार के लिए 500 उत्तम महलों तथा उन में एक विशाल रमणीय भवन का निर्माण, पुष्पचूलाप्रमुख 500 राजकुमारियों के साथ पाणिग्रहण, माता-पिता का 500 की संख्या में प्रीतिदान-दहेज देना, सुबाहुकुमार का उस प्रीतिदान का अपनी पत्नियों में विभक्त करना तथा अपने महलों के ऊपर उन तरुण रमणियों के साथ 32 प्रकार के नाटकों के द्वारा सानन्द सांसारिक कामभोगों का उपभोग करना, इन सब बातों को संसूचित करने के लिए सूत्रकार ने-सेसं तं चेव जाव उप्पिं पासाए विहरइ-इन पदों का संकेत कर दिया है। इन सब बातों का सविस्तार वर्णन प्रस्तुत अध्ययन के आरम्भ में किया जा चुका है। पाठक वहीं देख सकते हैं। लद्धा ३-यहां पर दिए गए 3 के अंक से-पत्ता अभिसमन्नागया-इन शेष पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। इन पदों का अर्थ पूर्व में लिख दिया गया है। इस प्रकार सुबाहुकुमार के अतीत और वर्तमान जीवनवृत्तान्त का परिचय करा देने के बाद अब सूत्रकार उस.के भावी जीवनवृत्तान्त का वर्णन करते हैं- मूल-पभू णं भंते ! सुबाहुकुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ? हंता पभू। तए णं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वन्दित्ता नमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ हत्थिसीसाओ णगराओ पुप्फकरंडाओ उजाणाओ कयवणमालजक्खायतणाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयं विहरइ। तए णं से सुबाहुकुमारे समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे विहरइ। तए णं सुबाहुकुमारे अन्नया चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छड्. उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ पमजित्ता उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहेइ पडिलेहित्ता दब्भसंथारगं संथरेइ दब्भसंथारं दुरूहइ। अट्ठमभत्तं पगेण्हइ, पोसहसालाए पोसहिए अट्ठमभत्तिए पोसहं पडिजागरमाणे पडिजागरमाणे विहरइ। द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [901
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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