________________ छाया-प्रभुः भदन्त ! सुबाहुकुमारो देवानुप्रियाणामन्तिके मुंडो भूत्वाऽगारादनगारतां प्रव्रजितुम् ? हन्त प्रभुः। ततः स भगवान् गौतमः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्यित्वा संयमेन तपसाऽऽत्मानं भावयन् विहरति / ततःस श्रमणो भगवान् महावीरः अन्यदा कदाचित् हस्तिशीर्षाद् नगराद् पुष्पकरंडादुद्यानात् कृतवनमालयक्षायतनात् प्रतिनिष्क्रामति प्रतिनिष्क्रम्य बहिर्जनपदं विहरति / ततः स सुबाहुकुमारः श्रमणोपासको जातः, अभिगतजीवाजीवो यावत् प्रतिलम्भयन् विहरति। ततः स सुबाहुकुमारोऽन्यदा चतुर्दश्यष्टम्युद्दिष्टपौर्णमासीषु यत्रैव पौषधशाला तत्रैवोपागच्छति उपागत्य पौधषशालां प्रमाटि प्रमाW उच्चारप्रस्रवणभूमिं प्रतिलेखयति प्रतिलेख्य दर्भसंस्तारं संस्तृणोति, दर्भसंस्तारमारोहति / अष्टमभक्तं प्रगृण्हाति। पौषधशालायां पौषधिकोऽष्टमभक्तिकः पौषधं प्रतिजाग्रत् 2 विहरति। पदार्थ-भंते ! हे भदन्त! सुबाहुकुमारे-सुबाहुकुमार। देवाणुप्पियाणं-आपश्री के। अंतिएपास। मुंडे भवित्ता-मुंडित हो कर। अगाराओ-अगार-घर को छोड़ कर। अणगारियं-अनगारधर्म को। पव्वइत्तए-प्राप्त करने में। पभू?-समर्थ है ? णं-वाक्यालंकारार्थक है। हंता-हां। पभू-समर्थ है। तए णं-तदनन्तर। से-वह। भगवं-भगवान्। गोयमे-गौतम। समणं-श्रमण। भगवं-भगवान् महावीर स्वामी को। वंदइ-वन्दना करते हैं। नमसइ-नमस्कार करते हैं। वंदित्ता जमंसित्ता-वंदना, नमस्कार करके। संजमेणं-संयम और। तवसा-तप के द्वारा। अप्पाणं-आत्मा को / भावेमाणे-भावित करते हुए। विहरइ-विहरण करने लगे। तए णं-तदनन्तर। से-वे। समणे-श्रमण। भगवं-भगवान् महावीर स्वामी। अन्नया-अन्यदा। कयाइ-किसी समय / हत्थिसीसाओ-हस्तिशीर्ष। णगराओ-नगर के। पुण्फंकरंडाओपुष्पकरंडक नामक / उज्जाणाओ-उद्यान से।कृतवणमालजक्खायतणाओ-कृतवनमाल नामक यक्षायतन से। पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता-निकलते हैं, निकल कर। बहिया-बाहर। जणवयं-जनपद-देश में। विहरइ-विहरण करने लगे। तए णं-तदनन्तर / से-वह। सुबाहुकुमारे-सुबाहुकुमार। समणोवासएश्रमणोपासक-श्रावक-जैनगृहस्थ / जाए- हो गया। अभिगयजीवाजीव-जीव और अजीव आदि तत्त्वों का मर्मज्ञ / जाव-यावत्। पडिलाभेमाणे-आहारादि के दानजन्य लाभं को प्राप्त करता हुआ। विहरइविहरण करने लगा। तए णं-तदनन्तर / से-वह। सुबाहुकुमारे-सुबाहुकुमार। अन्नया-अन्यदा। चाउद्दसट्ठमुट्ठिपुण्णमासिणीसु-चतुर्दशी, अष्टमी, उद्दिष्ट-अमावस्या और पूर्णमासी इन तिथियों में से किसी एक तिथि के दिन / जेणेव-जहां। पोसहसाला-पौषधशाला-पौषधव्रत करने का स्थान था। तेणेव-वहां / उवागच्छइ उवागच्छित्ता-आता है, आकर। पोसहसालं-पौषधशाला का / पमज्जइ पमजित्ताप्रमार्जन करता है, प्रमार्जन कर।उच्चारपासवणभूमि-उच्चारप्रस्रवणभूमि-मलमूत्र के स्थान की। पडिलेहेइप्रतिलेखना करता है, निरीक्षण करता है, देखभाल करता है। दब्भसंथारं-दर्भसंस्तार-कुशा का संस्तारआसन। संथारेइ-बिछाता है। दब्भसंथारं-दर्भ के आसन पर। दुरूहइ-आरूढ़ होता है। अट्ठमभत्तं 902 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध