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________________ हुई है। गौतम स्वामी के इस प्रश्न में दान की महानता तथा विविधता प्रतिबोधित की गई है। जैनशास्त्रों में दस प्रकार के दान प्रसिद्ध हैं। उन का नाम निर्देशपूर्वक अर्थसम्बन्धी ऊहापोह इस प्रकार है १-अनुकम्पादान। २-संग्रहदान। ३-भयदान। ४-कारुण्यदान। ५लज्जादान।६-गर्वदान७-अधर्मदान।८-धर्मदान।९-करिष्यतिदान।१०-कृतदान। १-किसी दीन दुःखी पर दया करके उस की सहायतार्थ जो दान दिया जाता है. उसे १अनुकम्पादान कहते हैं। जैसे- भूखे को अन्न, प्यासे को पानी और नंगे को वस्त्र आदि का प्रदान करना। २-व्यसनप्राप्त मनुष्यों को जो दान दिया जाता है, उसे संग्रहदान कहते हैं। अथवा बिना भेद भाव से किया गया दान संग्रहदान कहलाता है। ३-भय के कारण जो दान दिया जाता है, उसे भयदान कहते हैं। जैसे कि ये हमारे स्वामी के गुरु हैं, इन्हें आहारादि न देने से स्वामी नाराज़ हो जाएगा, इस भय से साधु को आहार देना। - ४-किसी प्रियजन के वियोग में या उस के मर जाने पर दिया गया दान कारुण्यदान कहलाता है। ... ५-लज्जा के वश ही कर दिया गया दान लज्जादान कहलाता है। जैसे-यह साधु हमारे घर आए हैं, यदि इन्हें आहार न देंगे तो अपकीर्ति होगी, इस विचार से साधु को आहार देना। ६-गर्व या अहंकार से जो दान दिया जाता है वह "गर्वदान है। जैसे-जोश में आकर एक-दूसरे की स्पर्धा में भांड आदि को देना। . ७-अधर्म का पोषण करने के लिए जो दान दिया जाता है उसे अधर्मदान कहते हैं। जैसे-विषयभोग के लिए वेश्या आदि को देना या चोरी करवाने अथवा झूठ बुलवाने के लिए देना। ८-धर्म के पोषणार्थ दिया गया दान धर्मदान है। जैसे-सुपात्र को देना। त्यागशील (1) कृपणेऽनाथदरिद्रे व्यसनप्राप्ते च रोगशोकहते। यद्दीयते कृपार्थादनुकम्पा तद्भवेद्दानम्॥१॥ (2) अभ्युदये व्यसने वा यत्किञ्चिद्दीयते सहायार्थम्। तत्संग्रहतोऽभिमतं मुनिभिर्दानं न मोक्षाय // 1 // (3) राजारक्षपुरोहितमधुमुखमावल्लदण्डपाशिषु च। यद्दीयते भयार्थात्तदभयदानं बुधैर्जेयम्॥१॥ (4) अभ्यर्थितः परेण तु यद्दानं जनसमूहमध्यगतः। परचित्तरक्षणार्थं लजायास्तद्भवेद्दानम्॥१॥ (5) नटनर्तकमुष्टिकेभ्यो दानं सम्बन्धिबन्धुमित्रेभ्यः। यहीयते यशोऽर्थं गर्वेण तु तद्भवेद्दानम्॥१॥ (6) हिंसानृतचौर्योद्यतपरदारपरिग्रहप्रसक्तेभ्यः / यद्दीयते हि तेषां तज्जानीयादधर्माय॥१॥ (7) समतृणमणिमुक्तेभ्यो यद्दानं दीयते सुपात्रेभ्यः। अक्षयमतुलमनन्तं तद्दानं भवति धर्माय // 1 // द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [869
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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