SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 865
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रशास्ता-धर्मशास्त्र के पढ़ने या पढ़ाने वाला, प्रशास्त्रपुत्र, मल्लकी-नृपविशेष, मल्लकिपुत्र, लेच्छकि-नृपविशेष, लेच्छकिपुत्र, इन सब के अतिरिक्त और बहुत से राजा, ईश्वर-युवराज, तलवर-परितुष्ट राजा से दिए गए पट्टबन्ध से विभूषित नृप, माडम्बिक-मडम्ब (जिस के चारों ओर एक योजन तक कोई ग्राम न हो) का स्वामी, कौटुम्बिक-कई एक कुटुम्बों का स्वामी, इभ्य-बहुत धनी, श्रेष्ठी-सेठ, सेनापति-सेनानायक; सार्थवाह-संघनायक आदि इन में कई एक भगवान् को वन्दना करने के लिए, कई एक पूजन-आदर, सत्कार, सम्मान, दर्शन, कौतुहल के लिए, कई एक पदार्थों का निर्णय करने के लिए, कई एक अश्रुत पदार्थों के श्रवण और श्रुत के सन्देहापहार के लिए, कई एक जीवादि पदार्थों को अन्वयव्यतिरेकयुक्त हेतुओं, कारणों, व्याकरणों अर्थात् दूसरे के प्रश्नों के उत्तरों को पूछने के लिए, कई एक दीक्षित होने के लिए, कई एक श्रावक के 12 व्रत धारण करने के लिए, कई एक तीर्थंकरों की भक्ति के अनुराग से, कई एक अपनी कुलपरम्परा के कारण वहां जाने के लिए स्नानादि कार्यों से निवृत्त हो तथा अनेकानेक वस्त्राभूषणों से विभूषित हो, कई एक घोड़ों पर सवार हो कर, इसी भाँति कई एक हाथी, रथ, शिविका-पालकी पर सवार हो कर तथा कई एक पैदल ही इस प्रकार उग्रादि पुरुषों के झुण्ड के झुण्ड नाना प्रकार के शब्द तथा अत्यधिक कोलाहल करते हुए क्षत्रिय-कुण्डग्राम नामक नगर के मध्य में से निकलते हैं, निकल कर जहां ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर था और जहां बहुशालक नामक उद्यान था, वहां पहुंचे और भगवान् के छत्रादि रूप अतिशयों को देख कर अपने-अपने वाहन से नीचे उतरे और भगवान् के चरणों में उपस्थित हुए, वहां वन्दना, नमस्कार करने के पश्चात् यथास्थान बैठ कर भगवान् की पर्युपासना करने लगे। अपने महल में आनन्दोपभोग करते हुए जमालि ने जब यह कोलाहलमय वातावरण जाना तब उस के हृदय में यह इस प्रकार का अध्यवसाय उत्पन्न हुआ कि आज क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर में क्या इन्द्र का महोत्सव है अथवा स्कन्द-कार्तिकेय, मुकुन्द-वासुदेव अथवा बलदेव, नाग, यक्ष, भूत, कूप, तडाग, नदी, ह्रद, पर्वत, वृक्ष, चैत्य अथवा स्तूप का महोत्सव है जो ये बहुत से उग्रवंशीय, भोगवंशीय आदि लोग स्नान, वस्त्राभूषणादि द्वारा विभूषा किए हुए तथा नाना प्रकार के वाहनों पर आरूढ़ हुए एवं अनेकानेक शब्द बोलते हुए क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर के मध्य में से निकल रहे हैं। इस प्रकार विचार कर उस ने द्वारपाल को बुलाया और उससे पूछा कि हे भद्र पुरुष ! आज क्या बात है जो अपने नगर में यह बड़ा कोलाहल हो रहा है ? क्या आज कोई उत्सव है ? जमालि के इस प्रश्न के उत्तर में वह बोला कि महाराज! उत्सवविशेष तो कोई नहीं है किन्तु नगर के बाहर बहुशालक नामक उद्यान में श्री श्रमण 856 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy