________________ नगर में पधारे। परिषद् नगर से निकली। कूणिक की भांति महाराज अदीनशत्रु भी नगर से चले, तथा जमाली की तरह सुबाहुकुमार ने भी भगवान् के दर्शनार्थ रथ के द्वारा प्रस्थान किया, यावत् भगवान् ने धर्म का निरूपण किया। परिषद् और राजा धर्मकथा सुन कर चले गए। तदनन्तर भगवान् महावीर स्वामी के पास धर्मकथा का श्रवण तथा मनन कर अत्यन्त प्रसन्न हुआ सुबाहुकुमार उठ कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन, नमस्कार करने के अनन्तर कहने लगा भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थप्रवचन पर श्रद्धा करता हूँ, यावत् जिस तरह आप के श्री चरणों में अनेक राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि उपस्थित होकर, मुंडित हो कर तथा गृहस्थावस्था से निकल कर अनगार धर्म में दीक्षित हुए हैं अर्थात् जिस तरह राजा, ईश्वर आदि ने पांच महाव्रतों को ग्रहण किया है, वैसे मैं पांच महाव्रतों को ग्रहण करने के योग्य नहीं हूँ, अतः मैं पांच अणुव्रतों और सात शिक्षाव्रतों का जिस में विधान है ऐसे बारह प्रकार के गृहस्थधर्म का आप से अंगीकार करना चाहता हूँ। तब भगवान के "-जैसे तुम को सुख हो, किन्तु इस में देर मत करो-" ऐसा कहने पर सुबाहुकुमार ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास पंचाणुव्रत, सात शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार के गृहस्थधर्म को स्वीकार किया, अर्थात् उक्त द्वादशविध व्रतों के यथाविधि पालन करने का नियम ग्रहण किया।तदनन्तर उसी रथ पर सवार होकर जिधर से आया था, उधर को चल दिया। टीका-जब श्रमण भगवान महावीर स्वामी पुष्पकरण्डक उद्यान में पधारे तो उन के पधारने का समाचार हस्तिशीर्ष नगर में विद्युत्-बिजली की भान्ति फैल गया। नगर की जनता में हर्ष तथा उत्साह की लहर दौड़ गई। सभी भावुक नरनारी प्रभु के दर्शनार्थ उद्यान की ओर प्रस्थान करने की तैयारी में लग गए। इधर महाराज अदीनशत्रु भी भगवान् के आगमन को सुन कर बड़े प्रसन्न हुए और प्रभुदर्शनार्थ पुष्पकरण्डक उद्यान में जाने की तैयारी करने लगे। उन्होंने अपने हस्तिरत्न और चतुरंगिणी सेना को सुसज्जित हो तैयार रहने का आदेश दिया और स्वयं स्नानादि आवश्यक क्रियाओं से निवृत्त हो वस्त्राभूषण पहन कर हस्तिरत्न पर सवार हो महारानी धारिणी देवी को तथा सुबाहुकुमार को साथ ले चतुरंगिणी सेना के साथ बड़ी सजधज से भगवान् के दर्शनार्थ उद्यान की ओर चल पड़े। उद्यान के समीप पहुंच कर जहां उन्होंने पतितपावन श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को देखा वहां उन्होंने हस्तिरत्न से नीचे उतर कर अपने पांचों ही, १-खड्ग, २-छत्र, ३-मुकुट, ४-चमर और ५-उपानत् इन राजचिह्नों को द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [813