________________ मुण्डा: भूत्वा अनगाराद् अनगारितां प्रव्रजिताः, नो खलु अहं तथा शक्नोमि मुंडो भूत्वा अगारादनगारितां प्रव्रजितुम्।अहं देवानुप्रियाणामन्तिके पंचाणुव्रतिकं, सप्तशिक्षाव्रतिकं, द्वादशविधं गृहिधर्मं प्रतिपद्ये। यथासुखं देवानुप्रिय ! मा प्रतिबन्धं कुर्याः। ततः स सुबाहुकुमारः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यान्तिके पंचाणुव्रतिकं, सप्तशिक्षाव्रतिकं द्वादशविधं गृहिधर्मं प्रतिपद्यते प्रतिपद्य तमेव रथं आरोहति आरुह्य यस्या एव दिशः प्रादुर्भूतः तामेव दिशं प्रतिगतः। पदार्थ-तेणं कालेणं तेणं समएणं-उस काल और उस समय में। समणे-श्रमण। भगवंभगवान् / महावीरे-महावीर स्वामी। समोसढे-पधारे। परिसा-परिषद्-जनता। निग्गया-नगर से निकली। अदीणसत्तू-अदीनशत्रु। निग्गए-निकले। जहा कूणिए-जैसे महाराज कूणिक निकला था। सुबाहू विसुबाहुकुमार भी। जहा-जैसे। जमाली-जमालि। तहा-उसी प्रकार। रहेणं-रथ से। णिग्गए-निकला। जाव-यावत्। धम्मो-धर्म। कहिओ-प्रतिपादन किया। राया-राजा (चला गया और)। परिसा-परिषद्। गया-चली गई। तए णं-तदनन्तर। से-वह। सुबाहुकुमारे-सुबाहुकुमार। समणस्स-श्रमण। भगवओभगवान् / महावीरस्स-महावीर स्वामी के।अंतिए-पास से। धम्म-धर्म को। सोच्चा-श्रवण कर। निसम्मअर्थरूप से अवधारण कर। हट्ठतुढे-अत्यन्त प्रसन्न होकर। उट्ठाए-स्वयंकृत उत्थान क्रिया के द्वारा। उद्वेइ-उठते हैं। उद्वित्ता-उठ कर। समणं भगवंतं महावीर-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को। वंदइ वन्दित्ता-वन्दना करते हैं, कर के। नमसइ नमंसित्ता-नमस्कार करते हैं, करके। एवं-इस प्रकार। वयासी-कहने लगे। भंते !-हे भदन्त ! निग्गंथं पावयणं-निग्रंथ प्रवचन पर। सद्दहामि णं-मैं श्रद्धा करता हूँ। जाव-यावत्। जहा णं-जैसे। देवाणुप्पियाणं-आप श्री जी के। अंतिए-पास। बहवे-अनेक। राईसर-राजा, ईश्वर / जाव-यावत् / मुंडा भवित्ता-मुण्डित हो कर। अगाराओ-घर छोड़ कर।अणगारियं पव्वइया-मुनिधर्म को धारण किया है। खलु अहं-निश्चय से मैं। तहा-उस प्रकार / मुंडे भवित्ता-मुण्डित होकर। अगाराओ अणगारियं-घर छोड़ कर अनगार अवस्था को। पव्वइत्तए-धारण करने में। नो संचाएमि-समर्थ नहीं हूँ। अहं णं-मैं तो।देवाणुप्पियाणं-आप श्री के अंतिए-पास से। पञ्चाणुव्वइयंपाँच अणुव्रतों वाला। सत्तसिक्खावइयं-सात शिक्षाव्रतों वाला।दुवालसविहं-बारह प्रकार के। गिहिधम्मगृहस्थ धर्म को। पडिवजामि-स्वीकार करना चाहता हूँ। उत्तर में भगवान् ने कहा। अहासुहं-यथा अर्थात् जैसे तुम को सुख हो।मा-मत।पडिबंध-देर करो। तए णं-तदनन्तर।से-वह। सुबाहुकुमारे-सुबाहुकुमार। समणस्स-श्रमण। भगवओ-भगवान्। महावीरस्स-महावीर स्वामी के। अंतिए-पास। पंचाणुव्वइयंपांच अणुव्रतों वाले। सत्तसिक्खावइयं-सात शिक्षाव्रतों वाले। गिहिधम्म-गृहस्थ-धर्म को। पडिवजइ पडिवज्जित्ता-स्वीकार करता है, स्वीकार कर के। तमेव-उसी। रह-रथ पर। दुरूहइ दुरूहित्ता-सवार होता है, सवार हो कर। जामेव दिसं-जिस दिशा से। पाउन्भूए-आया था। तामेव दिसं-उसी दिशा को। पडिगए-चला गया। मूलार्थ-उस काल और उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी हस्तिशीर्ष 812 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्धः