________________ और एक-एक करोड़ का सुवर्ण दिया, एवं एक-एक मुकुट दिया, इसी प्रकार पीसने वाली दासियों तक सब वस्तुएं बांट दी तथा अन्य बहुत-सा सुवर्णादि भी उन सब को बांट कर दे दिया। उस के पश्चात् सुबाहुकुमार.....। __-फुट्टमाणेहिं जाव विहरइ-यहां के जाव-यावत् पद से विवक्षित-मुइंगमत्थएहिं वरतरुणीसंपउत्तेहिं-से लेकर-पच्चणुभवमाणे-यहां तक के पदों का विवरण प्रथम श्रुतस्कंध के तृतीयाध्याय में दिया जा चुका है। अन्तर मात्र इतना ही है कि वहां चोरसेनापति अभग्नसेन का वर्णन है जब कि प्रस्तुत में श्री सुबाहुकुमार का। __ अब सूत्रकार सुबाहुकुमार के अग्रिम जीवन का वर्णन करते हुए कहते हैं मूल-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे परिसा निग्गया। अदीणसत्तू निग्गए जहा कूणिए।सुबाहू वि जहा जमाली, तहा रहेणं णिग्गए, जाव धम्मो कहिओ। राया परिसा गया। तते णं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्टतुढे उट्ठाए उढेइ उद्वित्ता समणं भगवंतं महावीरं वंदइ नमसइ वन्दित्ता नमंसित्ता एवं वयासीसदहामि गं भंते ! निग्गंथं पावयणं जाव जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर जाव प्पभिइओं मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजामि।अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह। तएणं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जइ पडिवजित्ता तमेव रहं दुरूहइ दुरूहित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए। ____ छाया-तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणो भगवान् महावीरः समवसृतः। परिषद् निर्गता। अदीनशत्रुः निर्गतः यथा कूणिकः। सुबाहुरपि यथा जमालिस्तथा रथेन निर्गतः। यावद् धर्मः कथितः। राजा परिषद् गता। ततः सः सुबाहुकुमारः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अंतिके धर्मं श्रुत्वा निशम्य हृष्टतुष्टः उत्थाय उत्तिष्ठति उत्थाय श्रमणं भगवन्तं महावीरं वंदते वन्दित्वा नमस्यति नमस्यित्वा एवमवादीत्-श्रद्दधामि भदन्त ! निर्ग्रन्थं प्रवचनम्। यथा देवानुप्रियाणामन्तिके बहवो राजेश्वर यावद् प्रभृतयः द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [811