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________________ प्रासाद-महल बनवाए और उन के मध्य में एक विशाल भवन तैयार कराया। तदनन्तर शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में सुयोग्य आठ राजकन्याओं के साथ उस का एक ही दिन में विवाह कर दिया गया। विवाह के उपलक्ष्य में राजा बल ने आठ करोड़ हिरण्य, आठ करोड़ सुवर्ण, आठ सामान्य मुकुट, आठ सामान्य कुण्डलों के जोड़े, इस प्रकार की अनेकविध उपभोग्य सामग्री दे कर श्री महाबल कुमार को उन महलों में निवास करने का आदेश दिया और महाबलकुमार भी प्राप्त हुई दहेज की सामग्री को आठों रानियों में विभक्त कर उन महलों में उन के साथ सानन्द निवास करने लगा। यह है महाबल कुमार का प्रकृतप्रकरणानुसारी संक्षिप्त परिचय। विशेष जिज्ञासा रखने वाले पाठक महानुभावों को भगवतीसूत्र के ग्यारहवें शतक का ग्यारहवां उद्देशक देखना चाहिए। वहां पल्योपम और सागरोपम के क्षयापचयमूलक प्रश्न के उत्तर में भगवान् महावीर स्वामी ने सुदर्शन को उसी का महाबलभवीय वृत्तान्त सुनाया था। राजकुमार महाबल का आठ राजकुमारियों से विवाह हुआ-इस बात से विभिन्नता सूचित करने वाला सूत्रगत "-पुष्फचूलापामोक्खाणं-" इत्यादि उल्लेख है। इस में सुबाहुकुमार का 500 राजकन्याओं से विवाह होने का प्रतिपादन है तथा पाँच सौ प्रीतिदान-दहेज देने का वर्णन है। सारांश यह है कि जिस प्रकार भगवती सूत्र में महाबल के लिए भवनों का निर्माण और उस के विवाहों का वर्णन किया है, उसी प्रकार श्री सुबाहुकुमार के विषय में भी जानना चाहिए, किन्तु इतना अन्तर है कि महाबलकुमार का कमलाश्री प्रभृति आठ राजकन्याओं से विवाह हुआ और सुबाहुकुमार का पुष्पचूलाप्रमुख 500 राजकन्याओं से। इसी प्रकार वहां आठ और यहां 500 दहेज दिए गए। __-पंचसइओ दाओ जाव उप्पिं-यहां पठित-पंचसइओ दाओ-ये पद प्रथम श्रुतस्कंध के नवमाध्याय में लिखे गए-पंचसयहिरण्णकोडी ओपंचसयसुवण्णकोडीओ-से लेकरआसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकामं परिभाएउं-" इन पदों के परिचायक हैं। अन्तर मात्र इतना है कि वहां सिंहसेन का वर्णन प्रस्तावित हुआ है जब कि यहां सुबाहुकुमार का। शेष वर्णन समान ही है। तथा जाव-यावत् पद-तए णं से सुबाहुकुमारे एगमेगाए भज्जाए एगमेगं हिरण्णकोडिं दलयइ। एगमेगं सुवण्णकोडिं दलयइ। एगमेगं मउडं दलयइ एवं चेव सव्वं जाव एगमेगं पेसणकारिंदलयइ।अन्नं च सुबहुं हिरण्णं जाव परिभाएउंदलयइ।तए णं से सुबाहुकुमारे-इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को इष्ट है। इन पदों का अर्थ इस प्रकार है तदनन्तर सुबाहुकुमार ने अपनी प्रत्येक भार्या-पत्नी को एक-एक करोड़ का हिरण्य 810] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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