________________ सुबाहुकुमार का / शेष वर्णन समान ही है। तथा वहां मात्र-अब्भुग्गय०-इतना ही सांकेतिक पद दिया है जब कि प्रस्तुत में उसी के अन्तर्गत-भवणं-इस पद का भी स्वतन्त्र ग्रहण किया गया - "-एवं जहा महब्बलस्स रण्णो-" इन पदों से सूत्रकार ने प्रासादादि के निर्माण में तथा विवाहादि के कार्यों में राजा महाबल की समानता सूचित की है, अर्थात् जिस तरह श्री महाबल के भवनों का निर्माण तथा विवाहादि कार्य सम्पन्न हुए थे, उसी प्रकार श्री सुबाहुकुमार के भी हुए। प्रस्तुत कथासन्दर्भ में श्री महाबल का नाम आने से उसके विषय में भी जिज्ञासा का उत्पन्न होना स्वाभाविक है। अतः प्रसंगवश उस के जीवनवृत्तान्त का भी संक्षिप्त वर्णन कर देना समुचित होगा। हस्तिनापुर नगर के राजा बल की प्रभावती नाम की एक रानी थी। किसी समय उस ने रात्रि के समय अर्द्धजागृत अवस्था में अर्थात् स्वप्न में आकाश से उतर कर मुख में प्रवेश करते हुए एक सिंह को देखा। तदनन्तर वह जाग उठी और उक्त स्वप्न का फल पूछने के लिए अपने शयनागार से उठ कर समीप के शयनागार में सोए हुए महाराज बल के पास आई और उन को जगा कर अपना स्वप्न कह सुनाया। स्वन को सुनकर नरेश बड़े प्रसन्न हुए तथा कहने लगे कि प्रिये ! इस स्वप्न के फलस्वरूप तुम्हारे गर्भ से एक बड़ा प्रभावशाली पुत्ररत्न उत्पन्न होगा। महारानी प्रभावती उक्त फल को सुन कर हर्षातिरेक से पतिदेव को प्रणाम कर वापिस अपने शयनभवन में आ गई और अनिष्टोत्पादक कोई स्वप्न न आ जाए, इस विचार से शेष रात्रि उसने धर्मजागरण में ही बिताई। स्नानादि की आवश्यक क्रियाओं से निवृत्त होकर महाराज बल ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों-राजपुरुषों द्वारा स्वप्रशास्त्रियों को आमन्त्रित किया और उन के सामने महारानी प्रभावती का पूर्वोक्त स्वप्न सुना कर उस का फल पूछा। स्वप्रशास्त्रियों ने भी "-आप के घर में एक सर्वाङ्गपूर्ण पुण्यात्मा पुत्र उत्पन्न होगा, जो कि महान् प्रतापी राजा होगा या अखण्डब्रह्मचारी मुनिराज होगा.... आदि शब्दों द्वारा स्वप्र का फलोदय कथन किया। तदनन्दर राजा ने यथोचित पारितोषिक देकर उन्हें विदा किया। लगभग नवमास के परिपूर्ण होने पर महारानी ने एक सर्वाङ्गसुन्दर पुत्ररत्न को जन्म दिया। राजदम्पती ने बड़े आनन्द मंगल के साथ पुत्र का जन्मोत्सव मनाया तथा बड़े समारोह के साथ उस का नामकरण-संस्कार किया और "महाबल" ऐसा नाम रखा। तदनन्तर पांच धायमाताओं के संरक्षण में वृद्धि तथा किसी योग्य शिक्षक से शिक्षा को प्राप्त करता हुआ युवावस्था को प्राप्त हुआ। तब महाराज बल ने महाबल के लिए विशाल और उत्तम आठ * द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [809