SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कलकल शब्द करते हुए त्रपु-रांगा, सीसक-सिक्का और तैल से शरीर का अभिषेक करना, कुम्भीपाक-भाजनविशेष में पकाना, कम्पन अर्थात् शीतकाल में शीतल जल से छींटे दे कर शरीर को कम्पाना, स्थिरबन्धन-बहुत कस कर बांधना, वेध-भाले आदि से भेदन करना, वर्धकर्तन-चमड़ी का उखाड़ना, प्रतिभयकर-पल-पल में भय देना, करप्रदीपन-कपड़ों में लपेट कर तैल छिड़क कर मनुष्य के हाथों में आग लगाना इत्यादि अनुपम तथा दारुण दुःखों का वर्णन किया गया है। इस के अतिरिक्त विपाकसूत्र में यह भी बताया गया है कि दुःखफलों को देने वाली पापकर्मरूपी बेल के कारण नाना प्रकार दुःखों की परम्परा से बन्धे हुए जीव कर्मफल भोगे बिना छूट नहीं सकते, प्रत्युत अच्छी तरह कमर बांध कर तप और धीरज के द्वारा ही उस का शोधन हो सकता है। इस के अतिरिक्त सुखविपाक के अध्ययनों में वर्णित पदार्थ निम्नोक्त हैं हितकारी, सुखकारी तथा कल्याणकारी तीव्र परिणाम वाले और संशय रहित मति वाले व्यक्ति शील-ब्रह्मचर्य अथवा समाधि, संयम-प्राणातिघात से निवृत्ति, नियम-अभिग्रहविशेष, गुण-मूलगुण तथा उत्तरगुण और तप-तपस्या करने वाले, सत्क्रियाएं करने वाले साधुओं को अनुकम्पाप्रदान चित्त के व्यापार तथा देने की त्रैकालिक मति अर्थात् दान दूंगा यह विचार कर हर्षानुभूति करना, दान देते हुए प्रमोदानुभव करना तथा देने के अनन्तर हर्षानुभव करना, ऐसी त्रैकालिक बुद्धि से विशुद्ध तथा प्रयोगशुद्ध-लेने और देने वाले व्यक्ति के प्रयोग-व्यापार की अपेक्षा से शुद्ध भोजन को आदरभाव से देकर जिस प्रकार सम्यक्त्व का लाभ करते हैं और जिस प्रकार नर-मनुष्य, नरक, तिर्यंच और देव इन चारों गतियों में जीवों के गमन-परिभ्रमण के विपुल-विस्तीर्ण, परिवर्तन-संक्रमण से युक्त, अरति-संयम में उद्वेग, भय, विषाद, दीनता, शोक, मिथ्यात्व-मिथ्याविश्वास, इत्यादि शैलों-पर्वतों से व्याप्त, अज्ञानरूप अन्धकार से युक्त, विषयभोग, धन और अपने सम्बन्धी आदि में आसक्तिरूप कर्दम-कीचड़ से सुदुस्तर-जिस का पार करना बहुत कठिन है, जरा-बुढ़ापा, मरण-मृत्यु और योनि-जन्मरूप संक्षुभितविलोडित, चक्रवाल-जलपरिमांडल्य (जल का चक्राकार भ्रमण) से युक्त, 16 कषायरूप श्वापद-हिंसक जीवों से अत्यन्त रुद्र-भीषण, अनादि अनन्त संसार सागर को परिमित करते हैं, और देवों की आयु को बांधते हैं, देवविमानों के अनुपम सुखों का अनुभव करते हैं, वहां से च्यव कर इसी मनुष्यलोक में आए हुए जीवों की आयु, शरीर, पुण्य, रूप, जाति, कुल, 1. आयु की विशेषता का अभिप्राय है कि अन्य जीवों की अपेक्षा आयु का शुभ और दीर्घ होना। इसी भाँति शरीर की विशेषता है-संहनन का स्थिर-दढ होना। पण्य की विशेषता है-उसका बराबर बने रहना। रूप की विशेषता है-अति सुन्दर होना। जाति और कुल का उत्तम होना ही जाति और कुल की विशेषता है। जन्म की प्राक्कथन] श्री विपाक सूत्रम् [73
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy