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________________ वृक्षों वाले स्थान, राजा, मातापिता, समवसरण-भगवान् का पधारना और बारह तरह की सभाओं का मिलना, धर्माचार्य-धर्मगुरु, धर्मकथा, नगरगमन-गौतम स्वामी का पारणे के लिए नगर में जाना, संसारप्रबन्ध-जन्म मरण का विस्तार और दुःखपरम्परा कही गई हैं। यही दुःखविपाक का स्वरूप है। प्रश्न-सुखविपाक क्या है और उस का स्वरूप क्या है ? उत्तर-सुखविपाक में सुखरूप कर्मफलों को भोगने वाले जीवों के नगर, उद्यान, चैत्य-व्यन्तरायतन, वनखण्ड, राजा, मातापिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलोक और परलोक संबन्धी ऋद्धिविशेष, भोगों का परित्याग, प्रव्रज्या-दीक्षा, श्रुतपरिग्रह-श्रुत का अध्ययन, तपउपधान-उपधान तप या तप का अनुष्ठान, पर्याय-दीक्षापर्याय, प्रतिमा-अभिग्रहविशेष, संलेखना-शरीर, कषाय आदि का शोषण अथवा अनशनव्रत से शरीर के परित्याग का अनुष्ठान, भक्तप्रत्याख्यान-अन्नजलादि का त्याग, पादपोपगमन-जैसे वृक्ष का टहना गिर जाता है और वह ज्यों का त्यों पड़ा रहता है, इसी भाँति जिस दशा में संथारा किया गया है, बिना कारण आमरणान्त उसी दशा में पड़े रहना, देवलोकगमन-देवलोक में जाना, सुकुल में-उत्तमकुल में उत्पत्ति, पुनर्बोधिलाभ-पुनः सम्यक्त्व को प्राप्त करना, अन्तक्रिया-जन्ममरण से मुक्त होना, ये सब तत्त्व वर्णित हुए हैं। ___दुःखविपाक में प्राणातिघात-हिंसा, अलीकवचन-असत्य वचन, चौर्यकर्म-चोरी, परदारमैथुनसंसर्ग अर्थात् दूसरे की स्त्री के साथ मैथुन का सेवन करना तथा जो महान् तीव्र कषाय-क्रोध, मान, माया और लोभ, इन्द्रियों का प्रमाद-असत्प्रवृत्ति, पापप्रयोग-हिंसादि पापों में प्रवृत्ति, अशुभ अध्यवसायसंकल्प होते हैं, उन सब से संचित अशुभ कर्मों के अशुभ रस वाले कर्मफल कहे गए हैं। तथा नरकगति और तिर्यंचगति में बहुत से और नाना प्रकार के सैंकड़ों कष्टों में पड़े हुए जीवों को मनुष्यगति को प्राप्त करके शेष पाप कर्मों के कारण जो अशुभ फल होते हैं, उन का स्वरूप निम्नोक्त है ___ वध-यष्टि द्वारा ताडित करना, वृषणविनाश-नपुंसक बनाना, नासिका-नाक, कर्णकान, ओष्ठ-होंठ, अंगुष्ठ-अंगूठा, कर-हाथ, चरण-पांव, नख-नाखून इन सब का छेदनकाटना, जिह्वा का छेदन, अंजन-तपी हुई सलाई से आंखों में अञ्जन डालना अथवा क्षारतैलादि से देह की मालिश करना, कटाग्निदाह-मनुष्य को कट-चटाई में लपेट कर आग लगाना, अथवा कट-घासविशेष में लपेट कर आग लगा देना, हाथी के पैरों के नीचे मसलना, कुल्हाड़े आदि से फाड़ना, वृक्षादि पर उलटा लटका कर बांधना, शूल, लता-बैंत, लकुट-लकड़ी, यष्टि-लाठी, इन सब से शरीर का भञ्जन करना, शरीर की अस्थि आदि का तोड़ना, तपे तथा 72 ] श्री विपाक सूत्रम् . [प्राक्कथन
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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