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________________ जन्म, आरोग्य, बुद्धि तथा मेधा की विशेषताएं पाई जाती हैं। इस के अतिरिक्त मित्रजन, स्वजन-पिता, पितृव्य आदि, धन धान्यरूप लक्ष्मी-समृद्धि, नगर, अन्त:पुर, कोष-खज़ाना, कोष्ठागार-धान्यगृह, बल-सेना, वाहन-हाथी, घोड़े आदि रूप सम्पदा, इन सब के सारसमुदाय की विशेषताएं तथा नाना प्रकार के कामभोगों से उत्पन्न होने वाले सुख ये सभी उपरोक्त विशेषताएं स्वर्गलोक से आए हुए जीवों में उपलब्ध होती हैं। __ जिनेन्द्र भगवान् ने संवेग-वैराग्य के लिए विपाकश्रुत में अशुभ और शुभ कर्मों के निरन्तर होने वाले बहुत से विपाकों-फलों का वर्णन किया है। इसी प्रकार की अन्य भी बहुत सी अर्थप्ररूपणाएं (पदार्थविस्तार) कथन की गई हैं। श्रीविपाकसूत्र की वाचनाएं (सूत्र और अर्थ का प्रदान अर्थात् अध्यापन) परिमित हैं। अनुयोगद्वार-व्याख्या करने के प्रकार, संख्येय (जिनकी गणना की जा सके) हैं और संग्रहणियां-पदार्थों का संग्रह करने वाली गाथाएं, संख्येय विपाकसूत्र अङ्गों की अपेक्षा 11 वां अङ्ग है, इस के 20 अध्ययन हैं और इस के बीस उद्देशनकाल तथा बीस ही समुद्देशनकाल हैं। पदों का प्रमाण संख्यात लाख है अर्थात् इस में एक करोड़ 84 लाख 32 हज़ार पद हैं। अक्षर-वर्ण संख्येय हैं। गम अर्थात् एक ही सूत्र से अनन्तधर्मविशिष्ट वस्तु का प्रतिपादन अथवा वाच्य-पदार्थ और वाचक-पद अथवा शास्त्र का तुल्यपाठ जिस का तात्पर्य भिन्न हो, अनन्त हैं। पर्याय-समान अर्थों के वाचक शब्द भी अनन्त हैं। इसी प्रकार यावत् विपाकश्रुत में २चरण-पांच महाव्रत आदि 70 बोल और करणपिण्डविशुद्धि आदि जैनशास्त्रप्रसिद्ध 70 २बोलों की प्ररूपणा (विशेषरूप से वर्णन) की गई विशेषता का हार्द है-विशिष्ट क्षेत्र और काल में जन्म लेना। आरोग्य-नीरोगता की विशेषता उस के निरन्तर बने रहने में है। औत्पातिकी आदि चार प्रकार की बुद्धियों का चरमसीमा को प्राप्त करना बुद्धि की विशेषता है। अपूर्व श्रुत को ग्रहण करने की शक्ति की प्रकर्षता ही मेधा की विशेषता है। . 1. शिष्य के-महाराज मैं कौन सा सूत्र पढ़े? इस प्रश्न पर गुरुदेव का आचाराङ्ग आदि सूत्र के पढ़ने के लिए सामान्यरूप से कहना उद्देशन कहलाता है, परन्त गरु के किए गए"श्रीआचारांगसत्र के प्रथम श्रतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन को पढ़ो-" इस प्रकार के विशेष आदेश को समुद्देशन कहते हैं। गुरु से आदिष्ट सूत्र के अध्ययनार्थ नियतकाल को उद्देशनकाल, इसी भांति गुरु से आदिष्ट अमुक अध्ययन के पठनार्थ नियतकाल को समुद्देशन काल कहा जाता है। 2. पांच महाव्रत, दस प्रकार का यतिधर्म, 17 प्रकार का संयम, 10 प्रकार का वैयावृत्य, 9 प्रकार की ब्रह्मचर्य गुप्तियां, 1 ज्ञान, 2 दर्शन, 3 चारित्र, 12 प्रकार का तप, 1 क्रोधनिग्रह, 2 माननिग्रह 3 मायानिग्रह, 4 लोभनिग्रह, इन 70 बोलों का नाम चरण है। 3. चार प्रकार की पिण्डविशुद्धि, 5 प्रकार की समितियां, 12 प्रकार की भावनाएं, 12 प्रकार की प्रतिमाएं-प्रतिज्ञाएं, 5 प्रकार का इन्द्रियनिग्रह, 25 प्रकार की प्रतिलेखना, 3 प्रकार की गुप्तियां, 4 प्रकार के अभिग्रह, इन 70 बोलों को करण कहा जाता है। 74 ] श्री विपाक सूत्रम् . [प्राक्कथन
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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