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________________ का विनीत होने के कारण सुपुत्र कहलाता था। वह दयालु था। वह विधान आदि की मर्यादा का निर्माता और अपनी मर्यादाओं का पालन करने वाला था। वह उपद्रव करने वाला नहीं था और न ही वह उपद्रव होने देता था। वह मनुष्यों में इन्द्र के समान था तथा उन का स्वामी था। देश का हितकारी होने के कारण वह देश का पिता समझा जाता था। वह देश का रक्षक था। शान्तिकारक होने से वह देश का पुरोहित माना जाता था। वह देश का मार्गदर्शक था। वह देश के अद्भुत कार्यों को करने वाला था। वह श्रेष्ठ मनुष्यों वाला था और वह स्वयं मनुष्यों में उत्तम था। वह पुरुषों में वीर होने के कारण सिंह के समान था। वह रोषपूर्ण हुए पुरुषों में व्याघ्रबाघ के समान प्रतीत होता था। अपने क्रोध को सफल करने में समर्थ होने के कारण वह पुरुषों में आशीविष-सर्पविशेष के समान था। अर्थीरूपी भ्रमरों के लिए वह श्वेत कमल के समान था। गजरूपी शत्रुराजाओं को पराजित करने में समर्थ होने के कारण वह पुरुषों में श्रेष्ठ गन्धहस्ती के समान था। वह आढ्य-समृद्ध अर्थात् सम्पन्न था। वह आत्म-गौरव वाला था। उस का यश बहुत प्रसृत हो रहा था। उस के विशाल तथा बहुसंख्यक भवन-महलादि शयन-शय्या, आसन, यान, वाहन-रथ तथा घोड़े आदि से परिपूर्ण हो रहे थे। उस के पास बहुत सा धन तथा बहुत सा चांदी, सोना था। वह सदा अर्थलाभ-आमदनी के उपायों में लगा रहता था। वह बहुत से अन्न-पानी का दान किया करता था। उस के पास बहुत सी दासियां, दास, गौएं, भैंसे तथा भेड़ें थीं। उस के पास पत्थर फैंकने वाले यन्त्र, कोष भण्डार, कोष्ठागार-धान्यगृह तथा आयुधागार-शस्त्रशाला, ये सब परिपूर्ण थे, अर्थात् यंत्र पर्याप्त मात्रा में थे और उन से कोषादि भरे हुए रहते थे। उस के पास विशाल सेना थी, उस के पड़ोसी राजा निर्बल थे अर्थात् वह बहुत बलवान् था। उस ने स्पर्धा रखने वाले समानगोत्रीय व्यक्तियों का विनाश कर डाला था, इसी भान्ति उसने उन की सम्पत्ति छीन ली थी, उन का मान भंग कर डाला था, तथा उन्हें देशनिर्वासित कर दिया था, इसीलिए उस के राज्य में कोई स्पर्धा वाला समानगोत्रीय व्यक्तिरूप कण्टक नहीं रहने पाया था। उसने अपने शत्रुओं-असमानगोत्रीय स्पर्धा रखने वाले व्यक्तियों का विनाश कर डाला था, उन की सम्पत्ति छीन ली थी, उन का मान भंग कर डाला था, तथा उन्हें देश से निकाल दिया था, उस राजा ने शत्रुओं को जीत लिया था तथा उन्हें पराजित अर्थात् पुनः राज्य प्राप्त करने की सम्भावना भी जिन की समाप्त कर दी गई हो ऐसा कर डाला था। वह ऐसे राज्य का शासन करता हुआ विहरण कर रहा था, जिस में दुर्भिक्ष-अकाल नहीं था, जो मारी-प्लेग के भय से रहित था, क्षेमरूप था, अर्थात् वहां लोग कुशलतापूर्वक रहते थे। शिवरूप-सुखरूप था। जिस में भिक्षा सुलभ थी, जिस में डिम्बों-विघ्नों और डमरों-विद्रोहों का अभाव था। द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [805
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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