________________ "-सीहं सुमिणे जहा मेहजम्मणं तहा भाणियव्वं-" इस पाठ में सूत्रकार ने सुबाहुकुमार के जीवन की जन्मगत समानता मेघकुमार से की है। मेघकुमार कौन था, उसने कहां पर जन्म लिया था, और उस के माता-पिता कौन तथा किस नाम के थे, इत्यादि बातों के जानने की इच्छा सहज ही उत्पन्न होती है। तदर्थ मेघकुमार के प्रकृतोपयोगी जीवनवृत्तान्त को संक्षेप से वर्णन कर देना भी आवश्यक प्रतीत होता है राजगृह नाम की एक प्रसिद्ध नगरी थी। उस के अधिपति-नरेश का नाम श्रेणिक था। उन की रानी का नाम धारिणी था। एक बार महारानी धारिणी राजोचित उत्तम वासगृह में आराम कर रही थी। उस ने अर्धजागृत अवस्था में अर्थात् स्वप्न में एक परम सुन्दर तथा जम्भाई लेते हुए, आकाश से उतर कर मुँह में प्रविष्ट होते हाथी को देखा। इस शुभ स्वप्न के देखने से रानी की नींद खुल गई। तदनन्तर वह अपना उक्त स्वप्र पति को सुनाने के लिए अपनी शय्या से उठ कर पति के शयनस्थान की ओर चली। पति की शय्या के समीप पहुँच कर धारिणी देवी ने अपने पति महाराज श्रेणिक को जगाया और उन से अपना स्वप्न कह सुनाया। तदनन्तर फलजिज्ञासा से वह वहां बैठ गई। धारिणी से उस के स्वप्र को सुन कर महाराज श्रेणिक को बहुत हर्ष हुआ। वे धारिणी से बोले कि प्रिये ! यह स्वप्न बड़ा शुभ है, इस के फलस्वरूप तुम्हारी कुक्षि से एक बड़े भाग्यशाली पुत्र का जन्म होगा जो कि परम यशस्वी और कुल का प्रदीप होगा। पति के मुख से उक्त शब्दों को सुनकर उन को प्रणाम कर के रानी धारिणी अपने शयनागार में चली गई और कोई अनिष्टोत्पादक स्वप्र न आए इन विचारों से शेष रात्रि को उसने धर्मजागरण से ही व्यतीत किया। दूसरे दिन प्रात:काल आवश्यक कार्यों से निवृत्त हो कर महाराज श्रेणिक ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा स्वप्रशास्त्रियों को आमंत्रित किया और धारिणी देवी के स्वप्न को सुना कर उन से उस के शुभाशुभ फल की जिज्ञासा की। इस के उत्तर में स्वप्रशास्त्रों के वेत्ता विद्वानों ने इस प्रकार कहना आरम्भ किया महाराज ! स्वप्रशास्त्र में 72 प्रकार के शुभ स्वप्न कहें हैं। उन में 42 साधारण और 30 विशेष माने हैं, अर्थात् 42 का तो शुभ फल सामान्य होता है और 30 विशिष्ट फल देने वाले होते हैं। जिस समय अरिहंत या चक्रवर्ती अपनी माता के गर्भ में आते हैं, तब उन की माताएं इन तीस प्रकार के विशिष्ट स्वप्नों में से 14 स्वप्नों को देख कर जागती हैं, प्रत्युत जब वासुदेव गर्भ में आते हैं तब उन की माताएं इन चौदह स्वप्नों में से किन्हीं सात स्वप्नों को देखती हैं। जब बलदेव गर्भ में आते हैं तब चार स्वप्नों को देख कर जागती हैं। इसी प्रकार किसी मांडलिक राजा के गर्भ में आने पर उन की माताएं इन चौदह स्वप्नों में से किसी एक स्वप्न को देख कर 806 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध