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________________ . महारानी धारिणी देवी का रात्रि के समय महाराज अदीनशत्रु के पास स्वप्न का फल पूछने के लिए अपने शयनागार से उठ कर जाना, यह सूचित करता है कि पूर्वकाल में पतिपत्नी एक स्थान पर नहीं सोया करते थे, इससे तथा इसी प्रकार के शास्त्रों में वर्णित अन्य कथानकों से यह सिद्ध होता है कि उस समय प्रायः सभी लोगों की यही नीति थी, जिस से कि उन की दीर्घदर्शिता एवं विषयविरक्ति सूचित होती है। इस नीति के पालन से दम्पती भी अधिकाधिक सदाचारी रहने के कारण प्रायः नीरोग रहते और उन की सन्तति भी सशक्त अथच दीर्घजीवी होती थी। आज इस नीति का पालन तो शायद ही कहीं पर होता हो, तब इस का परिणाम भी वही हो रहा है जो नीति के भंग करने से होता है। आज के स्त्री और पुरुषों का दुर्बल होना, अनेक रोगों का घर होना तथा उत्साहहीन होना मात्र इस पूर्वोक्त पवित्र नीति के उल्लंघन का ही कुपरिणाम समझना चाहिए। राजकुमार होते हुए भी सुबाहुकुमार कृषिविद्या, कपड़ा बुनना और इसी प्रकार अन्यान्य दस्तकारी के कामों को जानते थे, यह उन के 72 कलाओं के ज्ञान से सूचित होता है। सुबाहुकुमार आज के धनी, मानी युवकों की भान्ति कृषि आदि धन्धों के करने में अपना अपमान नहीं समझते थे। वे जानते थे कि जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं, कभी जीवन सुखी तथा कभी दुःखी होता है। अनुकूल और प्रतिकूल दोनों तरह की स्थितियां जीवन में चलती रहती हैं, तदनुसार कभी अच्छा व्यवसाय मिल जाता है, तो कभी साधारण व्यवसाय से ही जीवन का निर्वाह करना होता है। यदि पास में कृषि आदि धन्धों का ज्ञान ही नहीं होगा, फिर भला समय पड़ने पर उन का उपयोग कैसे हो सकेगा? पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के विभाजन के उदाहरण ने इस तथ्य को व्यवहार का रूप दे दिया है। धन के विनष्ट हो जाने के कारण जो मनुष्य अर्थसाध्य व्यवसाय नहीं कर पाए वो यदि कुछ शिल्प-दस्तकारी का काम नहीं जानते थे तो उन्हें उदरपूर्ति करनी कठिन हो गई, परन्तु जब कि हाथ का उद्योग करने वालों ने अपने पुरुषार्थ से अपने जीवन की गाड़ी को बड़ी सुविधा के साथ चलाया और अपना भविष्य निराशापूर्ण एवं दुःखपूर्ण होने से बचा लिया। इसके अतिरिक्त कृषि आदि धन्धों का ज्ञान सांसारिक मनुष्य की स्वतन्त्रता को अक्षुण्ण बनाए रखता है और उसे आजीविकासम्बन्धी किसी भी कष्ट का भाजन नहीं बनने देता..... इत्यादि विचारों से प्रेरित हुए सुबाहुकुमार ने 72 कलाओं का शिक्षण प्राप्त किया था। . माता-पिता ने सुबाहुकुमार का विवाह उस समय किया जब कि वह पूरा युवक हो गया था। इस से बाल्यकाल का विवाह अनायास ही निषिद्ध हो जाता है तथा जो माता-पिता अपनी संतान का योग्य अवस्था प्राप्त करने से पहले ही विवाह कर देते हैं वे अपनी सन्तान द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [799
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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